शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

हमारा निजी दर्शन

1.वह मेरा रिश्तेदार है , इसलिए उसे इंटरव्यू में ज्यादा नम्बर देने ही हैं।
2. वह मेरी जाति का है , इसलिए उसे परीक्षा में ज्यादा नम्बर देने या दिलवाने ही हैं।
3. वह मेरे क्षेत्र का है , इसलिए उसका किसी भी प्रकार उद्धार करना /कराना ही है।
4. वह मेरे मित्र का बेटा/बेटी है , इसलिए उसका हितलाभ हर तरह   से करना मेरा फर्ज़ है।
5. उसका मेरे ऊपर बहुत बड़ा अहसान है , इसलिए इस तरह उसका अहसान उतारना ही है।
आदि आदि ऐसे अनेक उदाहरण  हैं , जो हमारे निजी संकीर्ण दर्शन को व्यक्त करते हैं।  हमारे इसी निजी संकीर्ण दर्शन के कारण अयोग्य लोगों का चयन हो रहा है, जिनकी योग्यता  बेसिक शिक्षा  की भी नहीं  है, वे बड़ी बड़ी डिग्रियां हासिल करके योग्यतम को धता बता रहे हैं।  डॉक्टर , इंजीनियर, शिक्षक , वकील  औऱ न जाने कितने पदों पर पहुंच कर अपनी कोरी शान में देश को बरवाद कर रहे हैं। ये सभी कुछ का दायित्व हम सभी उन कर्ता -धर्ताओं पर है , जिन्होंने उन्हें वहाँ तक पहुंचाया है।
   क्या ऐसे ऊपर चढ़ने और चढ़ाने वाले लोग कभी देश के एक सच्चे और अच्छे नागरिक हो सकते  हैं ? कदापि नहीं। क्या इनसे कभी देश भक्ति की उम्मीद की जा सकती है? नहीं। जो देश का एक  सामान्य सच्चा नागरिक होने की योग्यता नहीं रखता , वह जीवन में कभी भी देशभक्त हो सकता है? देशभक्त का विलोम तो  सभी जानते ही हैं , परन्तु उस शब्द का उच्चारण करने में भी मुझे अपनी लेखनी पर नियंत्रण करने को बाध्य होना पड़ रहा है।अपने एक तुच्छ स्वार्थ के लिए आदमी कितना पतित होता जा रहा है। ऐसा व्यक्ति चाहे अधिकारी हो या नेता, सांसद हो या विधायक, मंत्री हो या जज, देश भक्त नहीं है , उसकी बुद्धि का स्तर और एक आम आदमी का बुध्दि स्तर समान ही है। फिर तो यही  कहना पड़ेगा कि उस व्यक्ति ने अपने पद और प्रतिष्ठा का दुरुपयोग किया।
   जहाँ आदमी ने अपनी नैतिकता को उठाकर ताक पर रख दिया हो, उससे क्या अपेक्षा की जा सकती है ? यहीं पर उच्च पद प्रतिष्ठित लोग अपनी गरिमा और गुरुत्व से गिर कर देश ,समाज और व्यक्ति का विनाश कर रहे हैं, वे उनके अघोषित शत्रु ही हैं।  हमारा संकीर्ण निजी दर्शन राष्ट्र विरोधी है। यहीं से देश पतन के गर्त में जाता है , जहाँ योग्य को उपेक्षित कर अयोग्यों को पद प्रतिष्ठित करा दिया जाता है। यह प्रवृत्ति निश्चित ही निंदनीय है।आदमी के नैतिक भृष्टाचार का कारण है कि बार बार विज्ञप्तियां निकलती हैं और नियुक्ति नहीं हो पाती। कहीं न कहीं ऐसा पेंच  जरूर अटक रहा होगा  कि  नैतिकता नीचे दबी पडीं कराह रही होगी।
   मानसिक प्रदूषण को साफ और निर्मल किए बिना स्वच्छ भारत का निर्माण तो हो सकता है, किंतु शुद्ध भारत का निर्माण सम्भव नहीं है। स्वछता में गंदगी के वायरस हो सकते हैं किंतु शुद्धता में नहीं। हमें और आपको सबको मिलकर अपने मानसिक प्रदूषण को दूर कर  शुद्घ मानव, शुद्ध समाज और शुद्ध भारत  का निर्माण करना  है, केवल दिखावटी और बनावटी  स्वच्छ भारत का नहीं ।

शुभमस्तु।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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