मेरे एक 47 पूर्व के मित्र (सेवा निवृत्त बैंक मैनेजर ) ने टिप्पणी की है कि" बातें आपकी सब ठीक हैं , मगर इसका इलाज क्या है। मुझे तो नहीं लगता कि इसका कोई इलाज है। इलाज तो बताइए। इस पर मेरा यही कहना है संसार में असम्भव कुछ नहीं , कठिन अवश्य हो सकता है। इसी प्रकार नकल पर नियंत्रण असम्भव नहीं ,पर थोड़ा कठिन अवश्य है।क्योंकि हालात बहुत अधिक बिगड़ चुके हैं। 46 वर्ष पूर्व जब हम लोग स्नातक तथा परास्नातक कर रहे थे ,पर नकल का नाम सुना था ,लेकिन नहीं जानते थे कि नकल कैसे कर लेते हैं लोग। प्यास लगने पर भी पानी नहीं पीते थे और वर्णात्मक परीक्षा पद्धति होने के कारण दनादन लिखने में जुटे रहते थे।तीन घंटे में 35 से 40 पेज लिखने के बाद ही चेन मिलता था , तब कहीं पानी पीने और पेशाब जाने की सोचते थे।तब गैस पेपर थे, न मॉडल थे (जो आज के विद्यार्थी के आदर्श हैं), न गाइड बुक्स थी और न मोबाइल जैसी बातों की कल्पना ही की जा सकती थी।
मैं अपने पूर्व लेखों में लिख चुका हूं कि कुँए में भांग पड़ी है । इंसान का नैतिक पतन इतना अधिक हो चुका है कि उसके लिए जायज ,नाजायज कुछ भी नहीं , बस उसका उल्लू सीधा होना चाहिए , चाहे वह कैसे भी क्यों न हो। अकेला कोई दोषी नहीं है ,समाज , अभिभावक ,विद्यार्थी , शिक्षक अपने अपने स्थान पर दोषी है। शिक्षा के निजीकरण ने सर्वाधिक शिक्षा का विनाश किया है। नकल कराना उद्योग धंधा बन गया है। सरकार पढ़े लिखो को जॉब नहीं दे पा रही तो उसका रचनात्मक दिमाग ध्वंसात्मक हो गया है ।इसिलए वह येन केन प्रकारेण धन कमाने के लिए नकल माफिया बन गया। कोई पेपर आउट करा रहा है ,तो कोई डिवाइस से नकल करने कराने का कांट्रेक्टर बन गया है। कहीं संस्थाध्यक्ष छात्रों से पैसे लेकर ठेके पर नकल करा रहे हैं। पर आंखों का अंधा और नयनसुख नामधारी अभिभावक और छात्रअपना भला -बुरा सोचने की बुद्धि से भी बाहर हो गया है।बच्चे को नकल कराने के लिए वह हज़ारों खर्च कर सकता है , लेकिन अच्छी संस्था और शिक्षक के पास पढ़वाने नहीं भेजता। माना कि सभी का उद्देध्य बड़े -बड़े पद हासिल करना नहीं हो सकता, किसी को अपने पिता की दुकान की गद्दी की शोभा बढ़ानी है तो किसी को दहेज की रेट में इज़ाफ़ा करना है। नकल करके विधायक , सांसद ,मंत्री ति हुआ जा सकता है , क्योंकि हमारे स्वतंत्र भारत में इसके लिए अँगूठा टेक भी चलेगा।किन्तु नकल करके आई ए एस, पी सी एस, डॉक्टर , इंजीनियर नहीं बना जा सकता।
मानव का नैतिक पतन ही नकल के लिए ज्यादा जिम्मेदार है। जब तक लोगों की नैतिकता नहीं सुधरेगी , कोई पुलिस, प्रशासन या शासन नकल बन्द नहीं कर सकता। खुराफाती और माफिया लोगों का दिमाग बस इसी बात में चलता है कि नकल कैसे हो। आत्मनियन्त्रण और जन जागरूकता ही नकल पर कंट्रोल कर सकती है।अन्य आंदोलनों की तरह ही ,जैसे पोलियो ड्राप, मतदान करने, महिला शिक्षा को बढ़ावा देने आदि की तरह ही नकल नियंत्रण अभियान चलाने होंगे ,लोगों की सोच बदलनी होगी। और यह कोई बड़ा काम नहीं है। लेकिन जब सरकारें शिक्षा को अनावश्यक मानकर उसका बजट 100%से 50% कर दे , तो समझ लेना चाहिए कि इनकी दृष्टि में शिक्षा की क्या महत्ता है? केवल भोजन बांटने और शिक्षक को रसोइया बनाने सेब शिक्षा के स्तर में सुधार नहीं हो सकता। लोक लुभावन योजनाएं शिक्षा के स्तर को घटा रही हैं।
समाज ,सरकार ,प्रशासन, शिक्षक और छात्र सभी के समन्वित जागरण से नकल को रोका जा सकता है।नैतिकता में परिवर्तन अवश्यम्भावी है। अन्यथा भाँग तो कुँए में पड़ी ही हुई है। सभी नशे में हैं। तो रोके कौन!!!
इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
मैं अपने पूर्व लेखों में लिख चुका हूं कि कुँए में भांग पड़ी है । इंसान का नैतिक पतन इतना अधिक हो चुका है कि उसके लिए जायज ,नाजायज कुछ भी नहीं , बस उसका उल्लू सीधा होना चाहिए , चाहे वह कैसे भी क्यों न हो। अकेला कोई दोषी नहीं है ,समाज , अभिभावक ,विद्यार्थी , शिक्षक अपने अपने स्थान पर दोषी है। शिक्षा के निजीकरण ने सर्वाधिक शिक्षा का विनाश किया है। नकल कराना उद्योग धंधा बन गया है। सरकार पढ़े लिखो को जॉब नहीं दे पा रही तो उसका रचनात्मक दिमाग ध्वंसात्मक हो गया है ।इसिलए वह येन केन प्रकारेण धन कमाने के लिए नकल माफिया बन गया। कोई पेपर आउट करा रहा है ,तो कोई डिवाइस से नकल करने कराने का कांट्रेक्टर बन गया है। कहीं संस्थाध्यक्ष छात्रों से पैसे लेकर ठेके पर नकल करा रहे हैं। पर आंखों का अंधा और नयनसुख नामधारी अभिभावक और छात्रअपना भला -बुरा सोचने की बुद्धि से भी बाहर हो गया है।बच्चे को नकल कराने के लिए वह हज़ारों खर्च कर सकता है , लेकिन अच्छी संस्था और शिक्षक के पास पढ़वाने नहीं भेजता। माना कि सभी का उद्देध्य बड़े -बड़े पद हासिल करना नहीं हो सकता, किसी को अपने पिता की दुकान की गद्दी की शोभा बढ़ानी है तो किसी को दहेज की रेट में इज़ाफ़ा करना है। नकल करके विधायक , सांसद ,मंत्री ति हुआ जा सकता है , क्योंकि हमारे स्वतंत्र भारत में इसके लिए अँगूठा टेक भी चलेगा।किन्तु नकल करके आई ए एस, पी सी एस, डॉक्टर , इंजीनियर नहीं बना जा सकता।
मानव का नैतिक पतन ही नकल के लिए ज्यादा जिम्मेदार है। जब तक लोगों की नैतिकता नहीं सुधरेगी , कोई पुलिस, प्रशासन या शासन नकल बन्द नहीं कर सकता। खुराफाती और माफिया लोगों का दिमाग बस इसी बात में चलता है कि नकल कैसे हो। आत्मनियन्त्रण और जन जागरूकता ही नकल पर कंट्रोल कर सकती है।अन्य आंदोलनों की तरह ही ,जैसे पोलियो ड्राप, मतदान करने, महिला शिक्षा को बढ़ावा देने आदि की तरह ही नकल नियंत्रण अभियान चलाने होंगे ,लोगों की सोच बदलनी होगी। और यह कोई बड़ा काम नहीं है। लेकिन जब सरकारें शिक्षा को अनावश्यक मानकर उसका बजट 100%से 50% कर दे , तो समझ लेना चाहिए कि इनकी दृष्टि में शिक्षा की क्या महत्ता है? केवल भोजन बांटने और शिक्षक को रसोइया बनाने सेब शिक्षा के स्तर में सुधार नहीं हो सकता। लोक लुभावन योजनाएं शिक्षा के स्तर को घटा रही हैं।
समाज ,सरकार ,प्रशासन, शिक्षक और छात्र सभी के समन्वित जागरण से नकल को रोका जा सकता है।नैतिकता में परिवर्तन अवश्यम्भावी है। अन्यथा भाँग तो कुँए में पड़ी ही हुई है। सभी नशे में हैं। तो रोके कौन!!!
इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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