ये विकास का युग है,
हम सब विकासशील हैं
हर क्षेत्र का निरन्तर विकास
चाहे नैतिकता का हो सत्यानाश,
नैतिकता हाँफ रही है
कराह रही है
पर विकास सुपर सोनिक
विमान पर आरूढ़ है,
विकास का फार्मूला बड़ा गूढ़ है,
जो न समझे ये फार्मूला
वह आज के युग का मूढ़ है,
अब नहीं होतीं छोटी छोटी चोरियां
नहीं छीने जाते बैलट पेपर
ई वी एम न बैलट बॉक्स,
अब तो केवल और केवल
ऊँची कुर्सी पर फ़ोकस,
कितनी भी सीटें कोई जीत जाए
सरकार तो लाठी धारी की है,
तिकड़म , खरीद फरोख्त
किडनैपिंग सब कुछ जायज ,
युद्ध औऱ सियासत में
कुछ भी नहीं नाज़ायज़,
रातों -रात नक्शे पलट जाते हैं
इधर वाले उधर हो जाते हैं,
बे पेंदे के लोटा भक्त नेता
सुबह को इसमें
शाम को उधर नज़र आते हैं।
उन बेचारों की भी मजबूरी है,
यदि उनकी कुर्सी से अधिक दूरी है,
तो घुटघटकर दलभक्त नेता बनकर क्या करें?
उद्धार जो करना है सात पुश्तों का
तो क्यों न पाले का परिवर्तन करें?
आखिर वे भी देश के
'आदर्श'नागरिक हैं,
और उन्हें भी अपना और
अपनों का विकास करना है,
एक ही दल में फँसकर
क्या केरियर बरवाद करना है,
सियासत कोई समाज सेवा
तो है नहीं ,
स्व-साज सेवा है,
अच्छा खासा उद्योग धंधा है,
पढ़लिखकर कोई क्या कमाएगा
कोई भी बता दे
जो ऐसा बंदा है?
न डिग्री चाहिए
न चरित्र का झमेला,
झूठ , फरेब , गुंडई,
घड़ियाली आंसूं
औऱ हेकड़ी दबंगई,
यही कुछ 'विशेष सद्गुण'
अनिवार्य हैं,
बस दिलवा कर
बगबगे बगुला जैसे वसन
नेता बनना शिरोधार्य है,
अपना ही विकास नहीं
तो किसका करें,
समाज सेवा के ठेकेदार नहीं
यह भी तो विचार्य है।
विकास की भाषा बदली
परिभाषा भी बदली है,
समंदर से सिमटकर
आकाश से उतरकर
तिजोरी में आ अटका है,
आप कितना भी कहें विकास भटका,
यही तो निज विकास का
हल्का -सा झटका है।
इसी विकास के बल पर
अमेरिका जर्मन से
टकरा रहा है,
ये बात अलग है
कि खुलकर आने में
वोट की चिलमन में
पड़ौसी से बतियाने में
शरमा रहा है।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप",शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें