धौंस , धमकी या धक्का
नोट बंद करो या सिक्का
काठ की हांडी चढ़ती है एक बार
एक बार वक्त बदलता है सबका।
अपनी हदों के पार तो मत जाओ
अपनी जुबाँ तलवार ना बनाओ
क्या पता ऊँट की करवट क्या हो
किसी को भी इतना ना सताओ।
सभी के सिर में एक दिमाग है
जोआदमी की अस्मिता काभाग है
अस्मिता परपत्थर नचलाओ मित्रो
किसीका दुर्भाग्य किसीका सुभाग है।
लेने के लिए जुबाँ शहद हो गई
कीचड़ उछाल के लिए ज़हर हो गई
इतना भी नीचे गिरना कोई अच्छी बात नहीं
आम आदमी के लिए कहर हो गई।
ये पब्लिक है सब जानती है
तुम्हें भी उन्हें भी पहचानती है
अपनी औकातअब क्या दिखाते हो
ये चार छलनियों में तुम्हें छानती है।
अब कुछ बताने को शेष नहीं रहा
तब से अबतक"शुभम" बहुत सहा
इतना भी मत बढ़ो आगे कि हद टूटें
बहुत समझ लेना जो थोड़ा कहा।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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