ये
वह देश है जहाँ कभी
दूध की नदियाँ
बहती थीं ,आज भी बह
रहीं हैं, पर ये मत
पूछिए कि दूध गाय , भैंस
, भेड़ या बकरी है ।दूध
तो यह ऊँटनी
का भी नहीं
, क्योंकि वह कलयुगी
कलों और केमि
'कलों' से बनाया
जा रहा है। पर बह
रहीं हैं दूध की नदियाँ,
खोया और पनीर टनों
मनों ढेर ,बता
रहे हैं कि देश कितना
अधिक "विशुद्धता प्रेमी हो
गया है। दूध के
सागर और घी की नदियां
उफान पर हैं। कभी कभी
तो ये गणना मुश्किल हो जाती है कि
घी से दूध बन रहा
है या दूध से घी।
अथवा घी बनाने
के लिए उसका
कोई पारस्परिक संबंध
ही नहीं रहा।
बाबा रामदेव और
न जाने कितने
पूंजीपति कारखानों में कलियुगी
केमि'कलों' से
हजारों लाखों टन
घी का निर्माण
प्रति दिन कर रहे हैं।
दूध से ज्यादा
घी बन रहा है।
एक ओर डॉक्टर
लोग कहते हैं
कि घी से कोलस्ट्रोल बन रहा है, जो
हार्ट अटैक का जन्मदाता है , तो क्या हमारे आयुर्वेदाचार्य
ये चाहते हैं
कि लोग ज्यादा
घी खाएं और हार्ट अटैक
से सिधार जाएं?
एक ओर हार्ट
डिजीज के कारण का का
वृहत औऱ कृत्रिम
उत्पादन ,तथा दूसरी
ओर डॉक्टरों की
इनकम को बढ़ाने की
मिली-जुली साजिश।
यहां भी सियासत
, घोर आश्चर्य!! एक
ओर योग और दूसरी ओर
घी। क्या ही अज़ीब
विसंगति !! ये बात
केवल एक पतंजलि
की है और इस देश
में छिपे या अन
छिपे वेश में न जाने
कितने पतंजलि कारखानों
में घी बना रहे हैं
और जनता की मूर्ख बनाकर
रात -दिन ठग रहे
हैं। आखिर हमारी
आंखे कब खुलेंगी ?
कौन कहता है
कि भारत में
आज दूध की नदियाँ नहीं
बह रहीं , आज
तो दूध के अन्ध
महासागर उमड़
रहे हैं और घी के
दरिया में
सुनामी आ रहे हैं। हमारी ईमानदार
सरकारें सब जान रही हैं
, देख रही हैं
, परंतु सब नाजायज
जायज की तरह अठखेलियाँ कर रहा है। प्रशासन
भी क्या करे
, उसे भी तो उन्ही सरकारों
और सियासत की
छत्तरी के तले अपने धूप
,और पानी की फिक्र करनी
है, इसकी दिवाली
, दशहरा और
होली के पावन त्योहारों पर वहः भी अपना
आंदोलन चलाकर भाँग
के कुएं में
डुबकी लगाकर चेन
से आराम फरमाने
लगता है। इस देश की
" भक्तप्रवन "जनता
सियासी भक्ति
में इस कदर आकंठ
लीन रहती है कि कोई
माई का लाल कुछ भी
कर ले सफल हो ही
नहीं सकता। रिश्वत
लेने वाले रिश्वत
देकर छूट जाते
हैं।
"धन्यास्तु ये
भारत भूमि भागे"
इति
शुभम।
डॉ
भगवत स्वरुप "शुभम"
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