गुरुवार, 5 जुलाई 2018

सिरसागंज में सूखा (अनावृष्टि)के लिए उत्तरदायी कौन

विगत  कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि देश और प्रदेश में सामान्य वर्षा होने के बावजूद यहाँ वर्षा प्रायः बहुत ही कम होती है। पूर्व में कठफोरी से पूर्व तथा पश्चिम में शिकोहाबाद से पश्चिम दिशा में  वर्षा  अपेक्षाकृत बहुत अधिक होती है। लेकिन विगत 20 वर्षों से ये अनुभव किया और देखा जा रहा है कि यहाँ के बड़े -बड़े बुद्धिजीवी, धनाढ्य और समाज सुधारकों का ध्यान इस दिशा में शून्य है। किसी को न कोई सोचने की आवश्यकता है और न ही इसका अभाव ही खटकता दिखाई देता है। सभी बड़े संतुष्ट औऱ आशान्वित  नज़र आते हैं। धनाढ्य  लोगों को तो इसिलये कोई चिंता नहीं , क्योंकि वे पैसे से इसकी पूर्ति कर लेते हैं। जब कि इस  क्षेत्रीय अनावृष्टि में  उनका भी बहुत बड़ा दायित्व है। ये दायित्व सभी का तो नहीं , हाँ कुछ करोड़पतियों का अवश्य है। जो अभी स्प्ष्ट कर दिया जाएगा, कि वे कैसे औऱ क्यों  जिम्मेदार हैं।

मध्य वर्ग को इसलिए चिंता नहीं कि वह ईश्वर पर इतना अधिक आस्थावान है कि अपने ऊपर कोई दायित्व न लेकर ईश्वर पर थोपकर अलग हो जाता है। जब इसका दायित्व सबसे अधिक उसी का है। निम्न वर्ग को अपने दाल रोटी से फुर्सत नहीं औऱ वह जिम्मेदार भी नहीं है। अब ये समझने का प्रयास करें कि कौन कितना उत्तर दाई है ?
ज्ञातव्य है कि इस  कलयुग से पहले लोग किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के के लिए  उनका नाम जप किया करते थे तो देवी -देवता उन्हें वरदान देकर उपकृत किया करते थे। सभी जानते हैं कि द्रौपदी ने अपने पूर्व जन्म में तपस्या करने के पश्चात जब वर मांगा तो उनके मुख से वर दो , वर दो , वर दो, वर दो, वर दो --पाँच बार  निकला। देव ने कहा -तथास्तु, औऱ अपने अगले जन्म में वही वरदान जब फलीभूत हुआ तो उन्हें पाँच पांडवों के रूप में पाँच वर(पति) प्राप्त हुए। इसी प्रकार के एक नहीं , अनेक प्रसंग हैं।यही  स्थिति  सिरसगांज के उन वर प्राप्त कर्ताओं की है, जिनका वर निरन्तर  फलीभूत हो रहा है , और उनको  प्राप्त वरदान सारी जनता जनार्दन लिए अभिशाप बन गया है।एक ओर तो  ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव और दूसरी ओर यहाँ के उन कुछ तथाकथित लोगों को प्राप्त वरदान अकाल और दुर्भिक्ष की ओर  ले जा रहा है। यहाँ का किसान और कोल्ड स्टोरेज के स्वामी इस अनावृष्टि , अकाल औऱ दुर्भिक्ष के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं, क्योंकि  उनका रात-दिन  एक ही जप चल रहा है - आ लू ! आ लू!! आ लू !!!आ लू!!!!   और आ लू ही आ लू ? जब आप किसान औऱ कोल्ड स्टोरेज स्वामी यही जप किए जा रहे हैं तो लू  चल रही हैं औऱ बराबर चलती रहेंगी। लू केवल शुष्क मौसम में ही चलती हैं , कभी शरद , शिशिर , हेमंत, वसंत औऱ  वर्षा ऋतु में तो  नहीं चलतीं! बराबर लूके लिए की जा रही प्रार्थना औऱ जप का ही परिणाम है कि यहाँ वर्षां नाम मात्र की होती है। मानों आलू के लिए लोग विक्षिप्त हो गए हैं।  अनाप -सनाप रासायनिकों का प्रयोग,  जल को  प्रदूषित कर रहा है औऱ उधर उच्चताप के कारण जलस्तर नीचे जा रहा है। कोल्ड स्टोरेज से निकलने वाली अमोनिया आदि अनेक गैसों से वातावरण अत्यंत प्रदूषित  हो  गया है। इससे मानसूनी मेघ बरसने के बजाय पलायन कर जा रहे हैं। जब बादल ही नहीं होंगे तो वर्षा क्यों होगी?  किसानों  औऱ कोल्ड स्टोरेज स्वामियों की लालची प्रवृत्ति क्षेत्र को अकाल  की  भट्टी में झोंकने के लिए 100 प्रतिशत जिम्मेदार है। अब तो शायद आप समझ गए होंगे कि कुछ करोड़पति औऱ  समस्त आलू-किसान अनावृष्टि के लिए क्यों औऱ कैसे जिम्मेदार है । ऐसा नहीं है कि कोई आलू - किसान  अनाड़ी , अपढ़ या अनभिज्ञ हो। लेकिन उनके अंदर  विवेक क्यों नहीं जागता कि वह इस पर विचार कर सके और आलू के अलावा कोई अन्य फसलें ले सके। औषधीय वनस्पतियों , अन्य हरी  शाक सब्जियों, फूलों व अन्न की खेती करके भी  पैसा कमाया जा सकता है। आलू अपनी जरूरत और  कच्चा बेचने लायक ही पैदा किया जाए तो सब प्राकृतिक समस्या से मुक्त  हुआ जा सकता है।रासायनिक खादों के  स्थान  पर जैविक खाद व कम्पोस्ट खाद  का प्रयोग करके  बरवाद हो रही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बचाया जा सकता है।लेकिन प्रश्न ये है कि विवेक रूपी नेत्रों पर जब पट्टी बंधी हो तो कुछ भी दिखाई नहीं देता।अभी वक़्त है कि संभला जा सकता है। किन्तु विचार करना होगा।  जुआरी  और सट्टेबाज की दशा है सिरसगांज के किसान की। शायद इस बार दांव लग जाए। बस इसी उम्मीद पर बरवाद भी हो रहा है।
भले  ही कर्जदार  हो जाए ,
कर्ज में दबकर मर जाए ,
पर करेगा सिर्फ आलू।
फिर  करते रह जाओगे 
आ लू !, आ लू !! आ लू!!!
भले ही चिपक जाए जीभ से  तालू, 
पर सपने में भी दिखेगा छोटा बड्डा आलू ।
इसे चेतावनी समझें या सुझाव,
पर मेरा है आप सभी से सद्भाव।
अगर क्षेत्र को बचाना है ,
तो आलू को सीमा में लाना है,
अन्यथा पीने के लिए पानी नहीं होगा,
न नल न समरसेवल न  कुआं होगा,
थैली में पानी से क्या नहाओगे,
या कपड़े    बर्तन     धुलाओगे,
पिओगे क्या   आलू  का  रस,
फिर नहीं रहेगा तेरा कुछ बस,
परिणाम बताने की  अब जरूरत ही  क्या है,
रे आदमी तू मुझसे ज्यादा  अक्लमंद हुआ है।

शुभमस्तु!
लेखक ©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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