जब भी कभी लोग भारत बंद की बात करते हैं तो मुझे एकओर बहुत आश्चर्य भी होता है और बन्दकर्ताओं की बुद्धि पर तरस भी आता है। क्यों आखिर क्यों ???? वह इसलिए कि जो भी लोग भारत बंद की बात करते हैं, चाहे वे कोई भी क्यों न हों, वे क्या अपना नहाना, खाना ,पीना, हंगना ,मुतना क्या एक दिन के लिए बंद कर सकते हैं या कर पाए हैं ? बंद करना है तो हवा का बहना बंद करो, नदियों का प्रवाह बंद करो, पृथ्वी की घूर्णन क्रिया बंद करो, आग का जलना रोको, वृक्षों की पत्तियों का हिलना , लताओं का झूमना, तितलियों का कलियों और पुष्पों को चूमना, फूलों का खिलना , किसलय का मुस्कराना , बंद करके दिखाओ। ये क्या कुछ दुकानें , स्कूल ,कल, कारखाने, बस, ट्रक या रेलगाड़ियां रोककर क्या भारत बंद होता है। पहले अपनी खुद की क्रियाएं बंद करो।अपने दिल की धड़कन, मष्तिष्क की अनवरत सक्रियता, रक्त वाहिकाओं का अनथक यत्रपथ, तो रोककर देखो। तब समझ में आएगा कि भारत बंद कैसे होता है। है किसी में हिम्मत ! ये क्या कि कुछ सियासी कुचक्रों के बहकावे में आकर देश का विनाश करने पर तुल गए ! ये भी कोई बन हुआ! जातिगत सियासत और संकीर्ण मनोवृत्ति से आत्मघाती सियासत केवल अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने के सदृश है।
जो इंसान एक दिन के लिए उक्त कथित को बंद नहीं कर सकता , वह क्या भारत बंद करेगा? अपनी बात शिष्ट तरीके से सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जाए , यही एक विवेकशील मानव का धर्म है। केवल माथे पर तिलक, गले में माला डाल लेना धर्म नहीं, अपने विवेक का शीलपूर्वक उपयोग करना भी धर्म है। शेष आपकी इच्छा। हिम्मत है तो एक दिन के लिए अपनी वाणी ही बंद कर के देख लो। अपनी औकात आप ही पता चल जाएगी ।
इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
जो इंसान एक दिन के लिए उक्त कथित को बंद नहीं कर सकता , वह क्या भारत बंद करेगा? अपनी बात शिष्ट तरीके से सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जाए , यही एक विवेकशील मानव का धर्म है। केवल माथे पर तिलक, गले में माला डाल लेना धर्म नहीं, अपने विवेक का शीलपूर्वक उपयोग करना भी धर्म है। शेष आपकी इच्छा। हिम्मत है तो एक दिन के लिए अपनी वाणी ही बंद कर के देख लो। अपनी औकात आप ही पता चल जाएगी ।
इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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