रविवार, 15 जुलाई 2018

कानाफूसी

"कानाफूसी" शब्द से तो हम सभी लोग सुपरिचित हैं। चार छह बैठे लोगों के बीच से एक आदमी किसी एक को अलग किनारे या कोने में ले जाकर उसके कान में अथवा इस प्रकार मंद ध्वनि में बतियाता है कि सामने बैठे अथवा खड़े हुए लोग देखते तो हैं पर ये सुन या समझ नहीं पाते कि क्या बात हो रही है! इसी वार्ता शैली का नाम कानाफूसी या फुसफुसाहट है। इससे कानाफूसी करने वाला /वाली अन्य लोगों के संदेह और जिज्ञासा का कारण बन जाता /जाती है। प्रायः ऐसा सभी लोग नहीं करते। कुछ ही लोग ऐसे मिलते हैं जो अक्सर इस प्रकार की गतिविधि में संलग्न पाए जाते हैं। मेरी अपनी विचार धारा के अनुसार ऐसे लोग कुछ असामान्य चरित्र के स्वामी होते हैं।
1. ये अपने को दूसरों से कुछ विशेष औऱ अधिक काबिल सिद्ध करने के प्रयास में ऐसा करते हैं।
2.ये लोग अपने को अधिक रहस्यवादी और गोपनीय सिद्ध करने के प्रयास में ऐसा करते हैं।
3. ये इतने डरपोक और कायर होते हैं कि वे समझते हैं कि यदि उनकी बात किसी और ने सुन ली तो कहीं उनकी गोपनीयता न भंग हो जाए।
4.ऐसे कुछ लोग अपनी अधिक महत्ता प्रदर्शित करने के चक्कर में सामान्य बात को भी किसी के कान में फुसफुसाकर अधिक संदेह में डालते रहतेहैं। और अन्य लोगों के शक का शिकार होते हैं।इससे कभी कभी देखने वाला इस सोच में भी पड़ जाता है कि शायद मेरी ही बुराई की जा रही होगी या मेरे ही विषय मे बातचीत हो रही है।
5.इस प्रकार के लोग अन्य लोगों का विश्वास भी खोने लगते हैं।
6.इनके अंदर एक भय भी व्याप्त होता है कि अगर कोई अन्य दो लोग बात कर रहे हों तो तो इन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि इन्हीं बारे में चर्चा हो रही है। ये पागल पन का एक लक्षण माना जाता है।
7.ऐसे लोग सहज ही किसी का विस्वास नहीं करते।और सबको संकीर्ण दृष्टि से देखने के आदी हो जाते हैं।
8.ये लोग अधिक स्पष्टवादी बनने का ढोंग करते हैं।
9.इनकी नज़र में उनके अलावा हर तीसरा व्यक्ति चोर , बेईमान और नाकारा है।
10.अपने को अधिक सावधान औऱ सुरक्षित मानना इनका अपना विश्वास है। जब कि वास्तविकता यह है कि ये समाज की नज़र में अपने में ही सिमटे हुए लोग होते हैं।
11. ये अपेक्षाकृत मिथ्यचारी औऱ षड्यंत्रकारी भी हैं।
इसलिए कृपया ऐसे "महापुरुषों" किंवा "महानारियों" से सावधान!!!! इस सम्बंध में एक बात ये भी है कि ऐसा विशेष " सद्गुण" पुरुषों में कम नारियों में अधिक होता है। यदि पुरुषों में होता है तो इसे भी नारी के ही "सद्गुणों " में गिना जाता है। दो सासें अपनी बहुओं की और दो बहुएँ अपनी सासों की "कानाफूसी " इसी तरह तो करती देखी जाती हैं। गाँव में पनघट , गली मोहल्ले के आवागमन काल , आते जाते, शहर में टहलते घूमते वक्त , स्वेटर बुनते वक्त, किसी के घर किसी बहाने से जाकर एकांत मिलने पर बस कानाफूसी ही तो होती है। यह मानव चरित्र का एक "विशेष गुण "है।
अब है तो है ही , प्रकृति प्रदत्त है , क्या आप कर लेंगे औऱ क्या मैं कर लूँगा। हाँ, पर सावधान करना मेरा फ़र्ज़ है सो कर दिया आपकी आप जानें। जरा शोध तो करें कि ये चिकना चुपड़ा दिखने वाला 'इंसान'नामक प्राणी कितना रहस्य का पिटारा है!!! इसकी जितनी भी गहराई में गए ये समन्दर से भी गहरा है। तभी तो इसके बहुरुपिए चरित्र से कहानी , उपन्यास , नाटक , काव्य ,इतिहास भरा पड़ा है। ये नित नवीन है , कहने को आदमी कितना प्राचीन है। रहस्यों का खजाना है , इसमें हमने और तुमने थोड़ा सा जाना है।


इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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