सोमवार, 16 जुलाई 2018

नकल-2

जिसका कोई कल न हो,
उसको नकल   कहते  हैं,
न बल हो  जिसमें   कोई 
उसको  अबल कहते   हैं।
हम सभी जीवन की दौड़ 
में चलते चले जा रहे हैं पर
साथ  ही  अपने कर्मों से 
अपने को छलते चले जा 
रहे हैं। प्रतियोगिता के इस 
युग में जिसने रेस से बाहर 
जाकर अनुचित साधन प्रयोग 
करने की कोशिश की उसका
कल भगवान भी नहीं संवार सकते। 
पर ये वे लोग हैं जो 
भगवान को मानते ही नहीं।
जो भगवान को नहीं मानते , 
शायद अपने माँ -बाप को 
नहीं मानते।कुछ ऐसे भी हैं 
जो दूसरों को टंगड़ी मारकर
आगे निकल जाने की फिराक
 में रहते हैं। इससे उन्हें खुद भी
गिर जाने का खतरा है। 

   यों तो सारा जीवन ही एक कम्पटीशन है। शॉर्ट कट चलने का  मानव -स्वभाव उसे परीक्षाओं में नकल करने के लिए प्रेरित करता है।' हर्रा लगे न फिटकरी रंग चोखा ही आए 'वाली मानव प्रवृत्ति उसे नकल के लिए उकसाती है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि नकल प्रेमी , नकल समर्थक , नकलची -,ये सभी निहायत ही चोर , बेईमान , चरित्रविहीन और मतलब के लिए कितने ही नीचे पतित होने वाले लोग हैं।
   आदमी का सामर्थ्य उसे पॉजिटिव या नेगेटिव  किसी भी ओर ले जा सकता है। निस्संदेह मानव -चरित्र इतना पतित हो चुका है कि उसने गलत काम करने ,कराने ,नकल करने कराने के इतने तरीके ईज़ाद कर लिए हैं कि तलाशी करने वाले तलाशते रहते हैं और फिर भी अनुचित सामग्री बरामद नहीं हो पाती है। इसमें भला कौन दोषी है । नकलची चोर , बेईमान और झूठा तो बेशक है ही ,लेकिन कहीं न कहीं तलाशी करने वाला भी दोषी है।  
   अपनी औलाद का सबसे बड़ा दुश्मन उसका बाप है और मां भी। क्योंकि वही नकल करने और कराने के लिए गेट पर मॉडल पेपर और पर्चियां लेकर तैनात है, ये अलग बात है कि वे प्रशासन के मजबूत इरादों के सामने घुटने टेक देते हैं। ये वही "शुभचिन्तक"हैं अपने औलादों के   टीचर्स से उनके  वालिदैन को देख लेने की फरियाद करते देखे जाते हैं -रास्ते में , बाजार में, या जहां बहु मिल जाएं। और दूसरा पक्ष यह भी है कि अन्यथा टीचर्स को गेट के बाहर 'देख लेने 'की भाषा का प्रयोग वही करते हुए देखे जा सकते हैं।
   एक पक्ष यह भी है कि प्रशासन टीचर को चीर और नकल कराने वाला समझ रहा है ,और उसकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था भी नहीं हैं। पुलिसः प्रशासन को पुलिस बल की मांग किए जाने पर कोई सुनवाई नहीं होती। क्या इसी की प्रशासनिक सहयोग कहा जाता है। अधिकारी गण उसी टीचर की हवालात में बंद करके अपनी सफलता'पर फला नहीं समाता। प्रशासन सहयोग लेना तो चाहता है पर देना नहीं चाहता। जिलाधिकारी और एस पी के आदेश ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं तो गरीब शिक्षकों और् कालेज प्रशासन की मांग को कौन सुनता है। पूछने पर कह दिया जाता है कि स्टाफ कम है। बोर्ड की परीक्षावधि में चप्पे चप्पे पर पुलिस कहाँ से आती है? है इसका जवाब किसी के पास। पुलिस के लोग खुद अपने बच्चों की नकल करने के लिए वर्दी की चमक दमक दिखाते दिख जाते हैं।  कुँए मेंभाँग घुली हो , तो नकल कैसे रुके उच्च शिक्षा की परीक्षाओं में? केवल और केवल निरीह शिक्षक को आदर्श का पुतला मान लिया जाता है।  बाकी सब दूध की नदी में गोता लगा कर निकलते हैं।धन्य मेरे देश और धन्य ये अभिभावक , जो नकल के प्रेरक ,सहायक और अपने ही बच्चों के दुश्मन हैं।

इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप ""शुभम"

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