सत्ता की कुर्सी
भैंस की सवारी है
कभी तुम्हारी है
कभी हमारी है।
बात लाठी की है
लठाधारी की है
कुल बात इतनी सी
भैंस की सवारी की है।
कभी तुम पीओ
कभी हम भी पी लें
कभी तुम निचोड़ो
हम भी जी लें।
चोरी का गुड़
ज्यादा मीठा होता है,
ईमानदारी का गुड़
बड़ा सीठा होता है।
भेस की रौताई
भैंस की सवारी से है
भैंस की खवाई
दिन की दिवारी से है।
जो भैंस पर चढ़ेगा
दूध भी वही पी पाएगा
उसकी सानी में भला
कौन जी पायेगा।
छाछ पीने वाले भी
कतारों में सजे हैं
उम्मीद में कटोरा लिए
कर रहे मज़े हैं।
गाढ़ा दूध तो बस
कुछ की ही विरासत है
सत्य कहने वालों की
आफ़त ही आफ़त है।
गांव में रहना है
तो हाँ जू हाँ जू कहना है
भेड़ों को तो हमेशा
कुएँ में ही रहना है।
कुर्सी के चारों पाए
जिसने भी खरीद पाए
चैन की नींद सोना है
"शुभम" क्या कोई कर पाए।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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