शनिवार, 28 जुलाई 2018

उत्थान -पतन

किसी पर्वत पर चढ़ना अर्थात आरोहण अर्थात उत्थान जितना कठिन है , उससे अधिक सरल है उससे उतरना अर्थात अवरोहण अर्थात पतन। इसी प्रकार जीवन में भी उत्थान पतन चलते रहते हैं। गिरने में पल नहीं लगता।और ऊपर उठ कर आगे बढ़ने में दांत खट्टे हो जाते हैं ।
   केवल सामने वाले को गलत सिद्ध करना बड़ा ही आसान है , किन्तु अपना दामन जो अपने सबसे करीब है ,उसमे झांकना ही  नहीं चाहते। अगर तनिक एक बटन खोल कर नीचे को झाँककर देख लें तो गलतियाँ हों ही न।यदि एक गलत व्यक्ति के एक हज़ार समर्थक हो जाएं तो इसका  अर्थ  ये  नहीं हो सकता कि ये सही है। सत्य बात सदा सत्य ही रहती है, उसके लिए  समर्थन जुटाने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती । ये ठीक है कि आज के युग में सत्य पाँव पाँव चलता है और असत्य विमानों में सैर करता है , लेकिन इसका मतलब ये नहीं हो सकता कि सत्य असत्य हो जाएगा। जब असत्य औंधे मुँह उसी जमीन पर सत्य के चरणों मे पतित होता है तो उसे अपनी औकात मालूम हो ही जाती है।असत्य क्षणजीवी होता है औऱ सत्य चिर जीवी होता है, अमर होता है। इसीलिए कहा जाता है "सत्यमेव जयते"।सत्य ही ईश्वर है। सत्य में भगवान निवास करते हैं।   
   आदमी का अहंकार उसे नीचे झाँकने से रोकता है, इसलिए सौ झूठे समर्थकों की भीड़ जुटाकर वह अपने सत्य पर समर्थन की मोहर लगवाना चाहता है।ये भी सच है कि आज सत्य के समर्थक उंगलियों पर गिनने लायक हैं , और झूठ और झूठों की रैलियां निकल रही हैं। इसका मतलब ये नही कि सच अपने पथ से डगमगा जाए।
   भीड़ का मतलब सत्य नहीं है। भीड़ का कोई व्यक्तित्व नहीं है। अपनी आत्मा को मारकर यदि झूठ का साथ तो हर आम आदमी   दे सकता है, परन्तु सत्य का साथ देने के लिए  उच्च मनोबल का स्वामी होना आवश्यक है।अपनी आत्मा की आवाज भी सुनना चाहिए। जिसने स्व -आत्मा की आवाज को नहीं सुना ,  उसमें और मानवेतर  प्राणियों में क्या  विभेद  रह गया? इसलिए मित्रो !मानव बनें और आत्मा की आवाज़ सुनें फिर न तो आपको अपने गले में झाँकने के लिए ही कहा जायेगा और न ही आप किसी इज़्म या  किसी झूठी दलबन्दी के चक्कर में अंधभक्त बनकर झूठी बातों और झूठे लोगों का अन्ध-समर्थन ही करेंगे।

" सत्य   की   छाँव
जीवन    की   राह,
झूठों    का    नारा
कोरी   वाह ! वाह!!"
अहंकार   की धरती
झूठ  पर  पाँव धरती,
सत्य   से   घृणा   है
न गरेबान   झाँकती।"
सत्य      की      जय
असत्य    का विनाश,
सत्य    खुला    हुआ
असत्य का पर्दाफ़ाश।"

  💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...