सोमवार, 16 जुलाई 2018

नकल:1

   नकल करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हम इतने बड़े जो हुए हैं , उसमें नकल का बहुत बड़ा योगदान है।बचपन से लेकर हम सभी नकल से बहुत कुछ  सीख रहे हैं।बचपन में अपने बड़ों की नकल करके बोलना , पहनना ,ओढ़ना , खाना ,पीना और न जाने क्या क्या सीखा। नई पीढ़ी के युवक और युवतियों के आदर्श अमिताभ, धर्मेंद्र, अनिल कपूर , अमजद खान, हेमामालिनी , रेखा, साधना, माधुरी दीक्षित, आदि आदि न जाने कितने आदर्श हैं जिनसे फैशन संबंधी नकल करके फ़टे हुए जीन्स पहनना सीखे, विभिन्न स्टाइल के हेयर कट, साड़ी ,ब्लाउज , शर्ट , जीन्स ,पेंट , खान ,पान, आदि सीख लिए हैं। ये सब नकल से ही तो आया है। आज हमारी पीढ़ी के आदर्श स्वामी विवेकानंद, गांधी , सुभाष , मदन मोहन मालवीय, राजा राम मोहन राय , सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन , डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. अबुल कलाम नहीं हैं। पर इतना जरूर है कि नकल के लिए भी अकल तो चाहिए ही। अकल नहीं तो नकल नहीं। कुछअपनी गांठ में भी होना चाहिए।   
   आज नकल रोकने के लिए सारा शासन प्रशासन एड़ी चोटी का पसीना बहा रहा है। वे अभिभावक और बच्चे कितने अधिक बुद्धिमान हैं जो नकल को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते हैं और उसी में संतान के भविष्य का दर्शन करते हैं।इसके लिए वे गधे को बाप मानने से भी नहीं चूकते , यद्यपि "ये" अभिभावक औऱ उनकी संतानें अपने गुरुजन को किसी गधे से ज्यादा महत्व भी नहीं देते । अभिभावकों जैसे ही कुछ गुरुजी भी हैं , जो सर्वजनहिताय की भावना से  ओतप्रोत हैं वे किसी का अहित न देख सकते हैं न कर कर सकते हैं। वे उसी प्रकार के अभिभावक संघ का ही एक अहम हिस्सा हैं। 'अपने पैरों आप कुल्हाडी मारना'-एक प्रचलित कहावत है। आज का ऐसा हर अभिभावक उससे भी दस कदम आगे है, क्योंकि उसने अपने को तो बरवाद किया ही है , वहः यह भी चाहता है कि उसकी संतान भी बरवाद हो जाए । शायद अंधे के हाथ बटेर लग जाए। इस भ्रम में जीता हुआ छात्र और अभिभावक  नकल के लिए कुछ भी करने को तैयार है। टीचर्स को प्रलोभन , धमकी , झगड़ा , मारपीट , राजनीति , नेताओं से फोन करवाना , "सर जरा बच्चे का ध्यान रखना ": जैसे जुमले बरसाना आज आम बात है।पर इन सब बातों का कितना असर होता है , ये व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता हैं।
   वर्तमान युग प्रतियोगिता का है। परंतु हमारे आदरणीय गार्जियन का उद्देश्य  यह हो , ये जरूरी तो नहीं। हो सकता है कि उन्हें दहेज के रेट बढ़ाने के लिए ही डिग्री दिलवानी हो, लड़का बी एस सी है, एम ए पास है, बीएड है , एम एड है , वगेरह वगैरह। किसी को अपनी गद्दी की शोभा बढ़ानी हो, पैतृक वयवसाय करना हो,  पर थोड़ा पढ़ भी लगा तो हिसाब किताब  के कान आएगा। उसे नहीं बनाना एस पी,  डीएम ,। नहीं करना आ ई ए एस, पी सी  एस। इसीलिए नकल से डिग्री मिल जाए तो क्या बुरा।
   धन्य हैं वे अभिभावक और छात्र और सहयोगी  जिनका उद्देश्य अपने और अपनों को बरवाद करना है। जिस दिन आज का यह समाज  समझदार हो जाएगा , नकल की प्रवृत्ति पर स्वतः रोक लग जाएगी। नई पीढ़ी के नकल समर्थक  सभी "सज्जनों "को प्रणाम , किन्तु सादर नहीं।

इति शुभम।

डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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