चोरों को माल का रखवाला बना दिया ,
जिसका जो भी हिस्सा था ले चलता करा दिया।
किसका करें विश्वास चट्टे-बट्टे एक थाली के,
इन मौसेरे भाइयों ने ये कैसा 'भला' किया।
चेहरे पर लगे मुखौटे अंदर सब गड़बड़झाला है,
भाषण कितने मोहक मधुर मधुर पर दिल काला का काला है,
'होशियार रहो 'कह चोर रहा,
मौका मिलते खुद माल निकाला है।
अपने भाई अपनी बहनें बेटा बेटी का भला करें,
रिश्तों की डोर मजबूत बड़ी डोरी पर ही चला करें,
काजर की काली कोठरी है कैसे बच पाए "शुभम" कहो,
आत्मा की ध्वनि को मार मार बस अपने दिल की सुना करें।
निगरानी में सब चोर चोर फिर चोरी कैसे रुकनी है,
बाल बचाने की खातिर बस हाँ जू हाँ जू कहनी है,
मन मसोस जीना घुटकर क्या ये भी जीवन जीना है,
मर्यादा -चीर तो तार-तार बस उलटी गंगा बहनी है।
आदर्शों की बातें अब बस अच्छी लगें किताबों में,
गुरुजन के सद -उपदेशों में या धर्मग्रंथ के पाठों में,
बस शेष ढोल में पोल यहाँ विश्वास मर गया इंसां का,
आँखों में बचा नहीं पानी क्या ढूढें "शुभं"इरादों में।
इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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