●1●
बोली डिबियादास से
डिबियादासी एक ,
इतना भी मत लीन हो
काम करो कुछ नेक ,
काम करो कुछ नेक
भुलाए तुम डिबिया में,
सब्जी रही न दाल
लुभाए तुम डिबिया में,
सुनकर डिबियादास ने
घर की खिड़की खोली,
'जाता हूँ बाज़ार'
जब डिबियादासी बोली।
●2●
पहुँचा जब बाज़ार में
डिबियादास महान ,
एक किलो धनिया मिरच
आलू ढाई सौ ग्राम ,
आलू ढाई सौ ग्राम
पुदीना आध पंसेरी,
जब लौटा निज धाम
हो गई रात अँधेरी,
डिबिया में थी मगन
न घर में झाड़ू पौंछा,
डिबिया चलती रही
बाइक पर जब घर पहुंचा।
●3●
पुदीना मिर्चें काटकर
सब्जी द ई बनाय,
भोजन जब करने लगे
थू -थू थूकत जांय,
थू -थू थूकत जांय
परस्पर दोष लगावें,
डिबिया में तल्लीन
आपने होश गँवावें ,
किसको सनकी कहें
हाथ जो लगा नगीना ,
आलू पछता रहे
खा रहे मिरच पुदीना।
●4●
डिबिया की अनुपम कथा
सब सुन लो सरकार,
बैठक में मेहमान हैं
कोई न पूँछनहार,
कोई न पूँछनहार
हारकर मांगा पानी,
'तू दे दे ' की बहुत देर तक
चली कहानी,
कोई न आया बाहर
चले लेकर निज डिबिया,
भुला दिया आचार
मरी सम्मोहक डिबिया !!
●5●
बेटा -बेटी सब मगन
डिबिया में दिन -रात,
खुद में ही खोए पड़े
कोई न किसी के साथ,
कोई न किसी के साथ
गई सब रौनक घर की,
सन्नाटा पसरा पड़ा
न चर्चा इधर- उधर की ,
उजड़ रहे घर -बार
कोई बैठा कोई लेटा,
डिबियादास महान
पिता -माता बहु बेटा।
●6●
पेपर देने जब चला
डिबिया ले ली हाथ,
पापाजी कहने लगे
मोबाइल क्यों साथ!
मोबाइल क्यों साथ
पुत्र पेपर में तेरा !
हेल्प करेगा पापा मेरी
वहाँ घनेरा,
व्हाट्सअप पर मिल जाते हैं
"शुभम" हैल्पर,
बहुत इज़ी हो जाता है
तब देना पेपर।।
🙏 शुभमस्तु
©✍🏼 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें