रविवार, 22 जुलाई 2018

डिबिया-कुण्डली

●1●
बोली   डिबियादास से
डिबियादासी        एक ,
इतना भी मत  लीन हो 
काम करो    कुछ  नेक ,
काम करो   कुछ   नेक 
भुलाए तुम डिबिया में,
सब्जी    रही  न   दाल
लुभाए तुम डिबिया में,
सुनकर डिबियादास ने
घर की खिड़की खोली,
'जाता      हूँ     बाज़ार'
जब डिबियादासी बोली।

●2●
पहुँचा जब     बाज़ार  में 
डिबियादास         महान ,
एक किलो धनिया मिरच
आलू     ढाई   सौ    ग्राम  ,
आलू      ढाई     सौ ग्राम 
पुदीना       आध    पंसेरी,
जब  लौटा   निज    धाम 
हो   गई   रात      अँधेरी,
डिबिया    में   थी   मगन  
न   घर   में    झाड़ू  पौंछा,
डिबिया    चलती      रही 
बाइक पर जब घर पहुंचा।

●3●
पुदीना     मिर्चें   काटकर 
सब्जी     द ई        बनाय,
भोजन जब    करने   लगे  
थू -थू        थूकत    जांय,
थू -थू        थूकत     जांय 
परस्पर   दोष        लगावें,
डिबिया   में        तल्लीन  
आपने    होश        गँवावें ,
किसको    सनकी     कहें  
हाथ   जो  लगा    नगीना ,
आलू        पछता       रहे 
खा   रहे    मिरच   पुदीना।

●4●
डिबिया   की अनुपम  कथा 
सब   सुन      लो   सरकार,
बैठक    में     मेहमान     हैं 
कोई        न         पूँछनहार,
कोई           न       पूँछनहार 
हारकर        मांगा    पानी,
'तू दे दे '  की बहुत देर तक
चली                    कहानी,
कोई   न    आया       बाहर
चले    लेकर  निज  डिबिया,
भुला        दिया       आचार
मरी      सम्मोहक   डिबिया !!

●5●
बेटा -बेटी       सब    मगन
डिबिया   में       दिन -रात,
खुद में    ही     खोए   पड़े
कोई न   किसी   के   साथ,
कोई   न   किसी   के साथ
गई  सब    रौनक  घर  की,
सन्नाटा       पसरा      पड़ा
न   चर्चा    इधर- उधर  की ,
उजड़     रहे        घर -बार 
कोई   बैठा     कोई     लेटा,
डिबियादास            महान 
पिता -माता      बहु    बेटा।

●6●
पेपर    देने    जब      चला 
डिबिया   ले      ली    हाथ,
पापाजी        कहने     लगे 
मोबाइल        क्यों    साथ!
मोबाइल      क्यों       साथ 
पुत्र      पेपर     में      तेरा !
हेल्प   करेगा    पापा   मेरी
वहाँ                       घनेरा,
व्हाट्सअप पर मिल जाते हैं
"शुभम"                 हैल्पर,
बहुत  इज़ी हो    जाता    है
तब          देना          पेपर।।

🙏 शुभमस्तु
©✍🏼 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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