मंगलवार, 17 जुलाई 2018

पॉलीथिन का जातीयकरण

   बहुत अच्छा हुआ पॉलीथिन बंदी का फ़रमान जारी हो ही गया। होना ही था। होना भी चाहिए । परन्तु मित्रों , पॉलीथिन बंदी  हुई है , पोलिथिक बंदी नहीं हुई। इस प्रकार इस प्लास्टिक युग की इस जिस का जातीयकरण हो गया, वर्ग - विभाजन हो गया। इस देश में जब हर चीज को ,यहाँ तक कि इंसान का भी जाति भेदीकरण हो गया तो फिर ये पॉली का क्यों न होता। मैं नहीं जानता कि मोटे से पतले ज्यादा खतरनाक हैं । वैसे देश , समाज और जहाँ- तहाँ मोटों का ही बोलबाला है। दुबले - पतलों को कौन पूँछने वाला है। पर पॉली के मामले में नई बात सामने आई कि पतली (थिन) मोटी(थिक) से अधिक घातक है। अर्थात थिन  अजर-अमर है, अविनाशी है, सैकड़ों वर्ष तक जस की तस । फिर तो अमर ही कहना चाहिए। पर क्या थिक या मोटी पॉली अल्पजीवी है ? लाभदायक है ? या जन और जीव हितकारी है ? इसलिए शायद इसे फ़रमान के दायरे से बाहर रखा गया है। थिक और थिन की एक सीमा भी सुनिश्चित की गई है- पचास से कम नहीं। पचास से ऊपर तो आदमी  भी बुढ़ाने लगता है, और कमजोर हो जाता है। ये पचास से ऊपर वाली भी शायद बुढ़िया की श्रेणी में आ गई होगी , इसलिए इसकी कम आयु मानकर  इसको बख़्श दिया गया , बेचारी औऱ कितना जिएगी ? ये सोचकर कृपा वृष्टि कर दी गई।
   एक और भी मज़े की बात सामने आई है, वह ये है कि जो उत्पादक इस थिन या थिक को पैदा कर रहे हैं , उन बेचारों को भी जिंदा रहना है। यदि वे ही न रहे तो मामला खराब हो सकता है, पारा ज्यादा गिरना भी ठीक नहीं।प्रेसर बना भी रहे और पारा शून्य पर या और नीचे न चला जाए , इसलिए इन पॉली जन्म दाताओं को बचाना भी ज़रूरी है। क्योंकि उन बेचारों की आजीविका प्रहार नहीं होना चाहिए। उन्हें भी आज़ाद भारत में आज़ाद रहकर हर जायज- नाज़ायज़ काम करने का अधिकार होना ही चाहिए। इसीलिए पचास माइक्रोन से मोटी प्रयोजनीय बनी रहेगी।
   मैगी, कुरकुरे, शैम्पू, टेडमेढे, अंकल चिप्स,  टॉफी , चॉकलेट्स, वनस्पति घी, रिफाइंड, बड़ी - बड़ी कम्पनियों के छोटे - बड़े उत्पाद, साड़ियां, शूटिंग - शर्टिंग, सभी में पोलिथिक चलती रहेगी। खतरा तो केवल थिन से है, पॉलीथिन से है। क्योंकि ये निम्न और मध्य वर्ग में प्रयोग की जाती है। आलू , गोभी , भिंडी , तोरई, कद्दू , टमाटर , धनियां , हरी मिर्च, पालक, पोदीना , मूली,  खीरा , सिंघाड़ा, आम ,  केला , संतरा , चीनी, बूरा , सूजी, तगार, दालें आदि पॉलीथिन में ही दी जाती हैं।  समोसे की दुकान से समोसा चटनी लाने के लिए अब घर से कपड़े का झोला ले जाने भर से काम नहीं चलने वाला, अब तो घर से ढक्कनदार लोटा गिलास ही लेकर जाने पड़ेंगे। खुले हुए मसाले पॉलीथिन में लाना नियम विरुद्ध है , लेकिन मुंशी पन्ना के कोई भी मसाले उनकी पॉली में लाना शान का
काम है। चाहे वह पॉली थिक हो या थिन। पर बाजार में चलती रहेगी प्रतिदिन। अब आप उसे पुण्य कहो या सिन। पर मित्रों है तो यही हक़ीक़त निशिदिन।

अर्थात कहने का आशय यह है कि  :--------

समरथ को  नहि दोष गुसाईं।
बस थिन पर ही रोक   लगाई।।

मोटे  करहु  सब  मोटी कमाई।
पैदा     कर    पोलिथिक भाई।।

उच्च वर्ग   को   उच्च छमा ही।
 निम्न    मध्य  के   दूध खटाई।।

प्रभुओं   की   देखो    प्रभुताई।
पॉलीथिन   से   आफत आई।।

पूंजीपति     को     पोलिथिक।
निम्न मध्य    को  सब वर्जित।।

कर लो चाहे जितना  उत्पादन।
फैंसी  पेकिंग   का अनुशासन।।

पॉलिथिन   से मुक्त  किया है।
पोलिथिक से  युक्त  किया है।।

पॉलिथिक में  दो  चटनी  को।
आलू गोभी फल  सब्जी को।।

पतलों  का  यहाँ काम नहीं है।
मोटों से  सब  काम   सही हैं।।

पतली -  पतलों से   पर्यावरण।
दूषित   होता  है    वातावरण।।

बस  मोटे  ही   क्षम्य    यहाँ हैं।
पतलों का कोई काम  कहाँ है??

भरम और  विरोधाभास बड़ा है।
जुर्माने  का    भूत    खड़ा    है।।

मोटी    पतली      का    पैमाना।
मैं क्या   समझूँ तू    क्या जाना।।

मापक  भी   अब ले    लो भैया।
देने पड़   जाएं   तुम्हें    रुपैया!!

 पीना  पड़  जाए जेल  का पानी!
बड़ी    कठिन   पॉलि  निगरानी।।

नहीं         चलेग     पॉलिपाउच।
बोतल    ले   लो   जी  बेडाउट।।

इससे     होगा    नहीं   प्रदूषण।
गाय न  खाए    भैंस न   सुअर।।

अभी    गरम   है   लोहा  भारी।
काटे    लकड़ी   लोहा  - आरी।।

भैया    मैंने     बस    ये   बोला।
हाथ में  लो कपड़े   का  झोला।।

झोले  में    थैलियाँ     सिलाओ।
फल सब्जी  उनमें   भर लाओ।।

ज़बरदस्त   का    लट्ठ   बुरा है।
मारे   औऱ    रोना  भी मना है।।

कुछ  तो  जिम्मा  रहे  तुम्हारा।
दूर   प्रदूषण   कर    दो सारा।।

थिन थिक के चक्कर क्या पड़ना।
हाथ   न   तेरे      कोई   नपना।।

शासन  का   सहयोग    ज़रूरी।
बना रखो पर      निश्चित   दूरी।।

साहब  से  आगे   मत   चलना।
घोड़े के    पीछे    मत    चलना।

साहब साँप   एक   से    जानो।
क्रमशः दंत    ज़हर  मय मानो।।

खोज  करहु   ऐसी   संजीवन।
पॉलीथिन को   करे निजीवन।।

तब  सुधार   होगा   पर्यावरण।
धरती माँ   का   अंचलावरण।।

💐शुभमस्तु!

✍🏼लेखक / रचयिता ©

डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...