बुधवार, 18 जुलाई 2018

कारखानेदारों से न कहना

दूकानदारों   से   भी  कहना 
खरीदारों   से    भी   कहना
भूलकर     भी      कभी भी
कारखानेदारों  से  न कहना।

बन्द   हो   गई   जो  पॉली,
बन्द  हो    जाएगी    थैली,
असर सियासत  पे पड़ेगा,
कारखानेदारों  से न कहना!

क्यों  रैली  में   भीड़  होगी!
सुनने   में   चिढ़  तो  होगी,
मज़बूरी    तुम्हारी     ऐसी ,
कारखानेदारों  से न कहना।

आख़िर वोट भी तो कीमती है,
उनका नोट भी तो   कीमती है,
बन्द   होकर भी चलती रहनी,
कारखानेदारों  से   न  कहना।

मुद्दे     भी    बहुत   ज़रूरी,
चाहे    पूरी   हो या  अधूरी,
प्लानिंग    ज़रूरी     बहुती,
कारखानेदारों से  न कहना।

पॉली  को    क्या    रुलाना!
थिक   को   ही  ठीक जाना,
बहन   छोटी    जा   रही है,
कारखानेदारों  से न कहना।

मति   भिन्न   हो    रही  है,
'थिन खिन्न   हो    रही   है,
पर  मज़बूरी   ऐसी भीषण,
कारखानेदारों से न कहना।

 ये ज्ञान    विज्ञान   का   है,
जलवायु   से      जुड़ा   है,
पॉली    है   ज़हर   घातक,
कारखानेदारों से न कहना।

तिजारत भी   चल रही   है,
सियासत भी  चल   रही है,
कोई बिगड़े  या   तो  सुधरे 
कारखानेदारों से न कहना।

जब   स्रोत   ही   खुला है ,
औऱ   हाथ   में   तुला   है,
नाली   चले      या   नाला ,
कारखानेदारों से न कहना।

फिर    सीधे    या    घुमाकर ,
पकड़े   जो   कान    जाकर,
छोड़ने नहीं "शुभम" अब
कारखानेदारों से न कहना।।

💐शुभमस्तु!

✍🏼रचयिता©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...