शनिवार, 14 जुलाई 2018

कुछ तो वज़ह होगी !

   देश औऱ दुनिया में उसका अस्तित्व दीर्घ काल से है ,आज भी है और भविष्य में भी रहेगा। बहुत पहले आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति लिखकर उसके नियम और राज्य संचालन को लेकर बहुत कुछ लिख दिया है। उससे बहुत पहले महाभारत के अंतर्गत धृतराष्ट्र के महामंत्री विदुर जी ने विदुर नीति लिखकर राजनीति पर विस्तृत चर्चा करते हुए अनेक नियम - निर्धारण किए हैं। राजा के कर्तव्य, उसकी रीति - रीति , आचरण, व्यवहार , चरित्र ,समाज के प्रति व्यवहार , अपने शत्रु  राजा के प्रति आचरण औऱ सावधानी आदि तथ्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र आदि ऐसे अनेक महाग्रंथ हैं , जिनसे राजनीति का सबक सीखा जा सकता है।यह ठीक है कि राजनीति  किताबी ज्ञान के आधार पर नहीं चलती। समकालीन परिस्थितियों के अनुसार ही राजनिति अपना मार्ग तय करती है। राजनीति के मार्ग पर चलना तलवार की दुधारी धार पर चलने के समान है।
   राजनीति या सियासत वह शै है , जिसे राजनेताओं औऱ इससे जुड़े हुए लोगों को छोड़कर लगभग सभी घृणा करते हैं, इससे जुड़े लोगों को अच्छा नहीं माना जाता,  दूसरी ओर आम आदमी की मजबूरी का नाम भी राजनीति है। क्योंकि आज के समय में राजनीति लगभग सभी क्षेत्रों में ऐसे प्रविष्ट हो गई है जैसे मोहल्ले के सभी घरों में नालियों की दुर्गंध। आप नहीं चाहेंगे तो भी आप प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। क्या शिक्षा ,क्या समाज, क्या धर्म  ,क्या सेवा में नियुक्तियाँ ,क्या स्थानांतरण, क्या व्यवसाय, क्या परीक्षा या परीक्षाफल,  छोटे -बड़े व्यवसाय, सेवा में प्रोन्नति, ऐसा कौन सा क्षेत्र शेष है , जहाँ राजनीति नहीं है। पुलिस , थाना  बिना राजनीति के चलना तो दूर हिल भी नहीं सकते। देश की सुरक्षा , देशनीति, विदेशनीति सभी कुछ राजनीति के रंग में रंगे हुए हैं।
    प्रश्न ये पैदा होता है कि इतना सब होने के बाद भी सियासतदां लोग इसमें कोई सुधार या परिवर्तन की क्यों नहीं सोचते?  शायद वे जानते हैं कि आदमी मजबूर होकर जाएगा भी तो कहाँ? उनकी या उन्हीं जैसों की शरण में जाएगा। बहुत कष्ट होता है जब कोई  मंत्री , सांसद या विधायक  अनैतिक आचरण में पकड़ा जाता है। ब्लात्कार,  चोरी, गबन ,  भ्रष्टाचार , शोषण, के आरोपों में उन्हें कारागार की शोभा बढ़ाते हुए देखा जाता है। देश और विदेश में ऐसे एक नहीं हजारों उदाहरण देखे जा सकते हैं। इसीलिए इन राजनेताओं की बातों, आश्वासनों, भाषणों, घड़ियाली आंसुओं, टी वी , अखबारों के खोखले बयानों पर कोई भी भला व्यक्ति या समाज विश्वास नहीं करता।कितने लोग हैं जिनके काम बिना शोषण और रिश्वस्त के हो जाते हैं? मुँह पर मौन की पट्टी बांध रखना उनकी विवशता है।
    आखिर राजनीति को भले लोगों की चीज क्यों नहीं माना जाता? जिस राजनीति में सौ में से पिचानवे प्रतिशत गन्दगी हो तो क्या कोई चरित्रवान , ईमानदार,सुशिक्षित , परिश्रमी, कर्मठ औऱ प्रतिभाशाली आदमी राजनीति में आना पसंद करेगा?  यही कारण है कि राजनीति को एक अनिवार्य गंदगी से अधिक स्थान नहीं दिया जाता। औऱ ये माना जाता है कि जिस व्यक्ति में कोई कला ,विद्या , हुनर, कौशल , शिक्षा आदि न हो , वही राजनीति में प्रवेश की सबसे बड़ी डिग्री है। ऐसे ही लोग राजनीति की पाठ शाला में प्रवेश के पात्र हैं। कुछ लोग अच्छा खासा पढ़ने -लिखने के बाद भी अपने में उन्हीं गुणों की प्रबलता के चलते प्रोफेसर, पुलिस ऑफिसर के पद ठुकराकर या सेवा निवृत्ति के बाद राजनेता का चोगा धारण कर लेते हैं। क्योंकि नाम औऱ नामा हासिल करने का जो खजाना राजनीति में है, वहः कहीं भी नहीं है। राजसी ठाठ-बात विलासिता के। ख्वाब राजनीति के शाही महल में ही पूरे हो सकते हैं। जिसके लिए आई ए एस , पी सी एस की तरह 18- 18 घंटे आँखें फोड़ने की जरूरत नहीं। पहले गिल्ली डंडा और अब गली मोहल्ले में क्रिकेट और कबड्डी खेलकर जब मंत्री हुआ जा सकता है , तो कोई बेवकूफ है जो डिग्रियों के चक्कर में स्कूल , कालेजों की खाक छानता फिरे?
   हर्रा लगे न फिटकरी रंग चोखा आए ,ऐसा जज, प्रोफेसर, जिलाधिकारी , पुलिस अधीक्षक, डी आई जी, आई जी आदि पद हासिल करने के लिए नही हो सकता। केवल और केवल राजनीति के मैदान में ही ऐसे खेल होते हैं।सामने वाला कोई देश हो या प्रत्याशी, को पछाड़ने के लिए सारी नैतिकता ताक पर रखे बिना जीत सम्भव नहीं।राजनीति की यही सबसे बड़ी नीति है कि चाहे सारे कानून तोड़ने पड़ें, चरित्र की धज्जियां उड़ जाएँ,  कितना ही झूठ और बेईमानी से काम लेना पड़े, रिश्वत लेनी या देनी पड़े, पर चिड़िया की आँख तो येन- केन -प्रकारेण सत्ता हथियाना ही है।
   निष्कर्ष ये है कि राजनीति औऱ राजनेता "हम नहीं सुधरेंगे" - की पॉलिसी पर काम करते हैं। इसमें ऐसी कोई सीधी लकीर नहीं है , जिस पर चलकर देश और समाज में राजनीति को सर्वजनोपयोगी बनाया जा सके।साँप की गति की तरह कब क्या करना , मुड़ना, झुकना , रुकना, घुसना , निकलना पड़े  यही उसकी प्रत्युत्पन्नमति का चमत्कार माना जाएगा।ये भी निरंतर परिवर्तनशीलता राजनीति का कौशल है, जो उसकी रक्षा कवच का कार्य करता है। 'जैसी बहे बयार तबहिं रुख तैसौ दीजे', राजनीति की अचूक  संजीवनी है।
   सोचिए इस बिंदु पर आप क्या सोचते हैं!!

 💐शुभमस्तु!
✍🏼लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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