061/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
आस्था का प्रवाह कुंभ,चेतना की थाह कुंभ,
संतों का उछाह कुंभ ,सभी उमाह रहे।
ज्ञानी-ध्यानी ऋषि -मुनि,आम या विशेष जन,
शुद्ध करें देह मन, पाप निवार रहे।।
एकमेक हुए सब, जाति है न याद अब,
संप्रदाय भी विलग, त्रिवेणी-धार बहे।
मन में है एक चाव, एक ही पवित्र भाव,
कर्म की ही काम्य नाव,देह सुकान गहे।।
-2-
सबका ही एक ध्येय, सबका ही नेक प्रेय,
सब भी हों एकमेव, एक ही विचार है।
भाषा जाति भिन्न भले,सभी ध्वज एक तले,
सबके ही पाप जले, जीवन असार है।।
एकता का महायज्ञ, जन हैं दृढ़प्रतिज्ञ,
आए नर मूढ़ विज्ञ, जन पारावार है।
उलट आचार रहें, कुंभ - नीर संग गहें,
त्रिवेणी की धार बहे, एकता सवार है।।
-3-
नर - किन्नर संत हैं, सघन एक तंत्र है,
ये कुंभ शुचि मंत्र है, एक ही सु - धार है।
कीर्तन भजन नेक, भले ही पृथक टेक,
नहीं कहीं रोक - टोक ,पूजन से प्यार है।।
मानव - संदेश एक, पूर्ण विश्व के सहेत,
नेह बहे समवेत, त्रिवेणी विचार है।
गाँव नगर कस्बे हैं, भले अलग चश्मे हैं,
एक साथ चलते हैं, ट्रेन में सवार हैं।
-4-
भारत देश एक है, मजहब अनेक हैं,
एकता ही टेक है, हर - हर बोलिए।
सुसंग सेवा साधना, करते हैं आराधना,
आपदाओं का सामना, अमृत ही घोलिए।।
मुख के अमिय बोल, शब्द-शब्द बोल तोल,
जीवन है अनमोल, हृदय - द्वार खोलिए।
सबका है एक चाव, रहे नहीं शेष घाव,
कुंभ - जल छत्र छाँव, उलट मत डोलिए।।
-5-
संगम सहिष्णुता का, मानव की समता का,
प्रेम दया ममता का, और कहाँ पाइए।
ज्ञान भक्ति और कर्म, मानवीय सत धर्म,
सांस्कृतिक नित्य मर्म, जान यहाँ जाइए।।
गङ्गा है विनम्र ज्ञान, यमुना सु- भक्ति खान,
सरस्वती कर्म मान, नित्य अपनाइए।
सबकी है एक चाह, त्रिवेणी में अवगाह,
कुंभ का सुखी प्रवाह, पुण्य भी कमाइए।।
शुभमस्तु !
04.02.2025●10.30 आ०मा०
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