शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

हनुमत [कुण्डलिया]

 068/2025

             


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                      -1-

सागर   हो    प्रभु   ज्ञान  के,  गुणागार  हनुमान।

अतुलित  बल  के  धाम  हो, सबके कृपानिधान।।

सबके    कृपानिधान,  पवनसुत  नाम   तुम्हारा।

तीन   लोक   में  ख्यात,कपीश्वर  का  उजियारा।।

'शुभम्' आप बजरंग,कुमति को त्वरित मिटाकर।

देते    सुमति   अपार,   ज्ञान  के हनुमत   सागर।।


                          -2-

मेरे     हनुमत  ने  किया,  उड़कर सागर   पार।

सीताजी  की  खोज  का, मन में सुदृढ़  विचार।।

मन  में   सुदृढ़   विचार, राम  के काज   सँवारे।

अतुलित   बल   आगार,बाग वन लंक   उजारे।।

कंचन    वर्ण     सुवेश,  शीश पर केश    घनेरे।

'शुभम्'   कान  के   रंध्र,पड़े  कुंडल   प्रभु  मेरे।।


                          -3-

न्यारे   अद्भुत  रूप  में, शोभित प्रभु हनुमान।

वज्र  विराजे  हाथ  में,  अंबर  ध्वजा  वितान।।

अंबर   ध्वजा   वितान, जनेऊ  काँधे    साजे।

भूत  प्रेत  बैताल, देख  हनुमत  छवि   भाजे।।

'शुभम्'  केसरी   पुत्र,अवतरित शंकर   प्यारे।

वंदित  जग में आप, जगत में अनुपम  न्यारे।।


                         -4-

आतुर   हैं   हनुमान  जी, करें  राम  के   काज।

गुणागार    विद्वान    हैं,  बहु  विद्याधर   साज।।

बहु    विद्याधर   साज, राम की महिमा   सुनते।

रामानुज    के  संग, सिया प्रभु उर में     बसते।।

'शुभम्' दिखा लघु रूप,बुद्धि के अतिशय चातुर।

लंका   जला   अबाध, विकट हैं हनुमत आतुर।।


                           -5-

ऐसे    हैं    हनुमान  जी,  धरे   भयंकर   रूप।

असुरों  का  संहार  कर,   फहराएं ध्वज  यूप।।

फहराएं     ध्वज  यूप,  सँजीवन  बूटी    लाए।

हर्षित   हैं   प्रभु राम, लखन  के प्राण  बचाए।।

'शुभम्' करें   प्रभु  राम, प्रशंसा तुम हो    वैसे।

जैसे   भरत   सुबंधु,  वही   तुम हनुमत   ऐसे।।


शुभमस्तु !


07.02.2025●10.30आ०मा०

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