073/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बड़े - बड़े वादे करते हैं
निभा न पाते।
घुने चने-से
खन-खन करते
भीतर से निस्सार,
एक बार
दिखता है मुखड़ा
आवर्तन दुश्वार,
बातों से गागर भरते हैं
पिला न पाते।
कथनी पूरब
करनी पच्छिम
बजते केवल गाल,
यहाँ वहाँ पर
आग लगाते
सुलगा रखी मशाल,
मरने दो
जो मरता कोई
जिला न पाते।
हाथी एक सफेद
खड़ा है
हुंकारे निज तुंड,
कोकिल जैसी
मधुर बोलियाँ
भीतर काक भुशुंड,
मेल मिलन की
कोरी बातें
मिला न पाते।
शुभमस्तु !
10.02.2025●2.00प०मा०
●●●
[2:38 pm, 10/2/2025] DR BHAGWAT SWAROOP:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें