102/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बनकर मूढ़ चाटता रबड़ी
आदमजात खिलाड़ी।
करना पड़े नहीं तन-मन से
कहता मुझे न आता
लुल्ल बना फुल तनखा पाए
नित ही ढोंग रचाता
इधर -उधर ही रहता बचके
चलता नहीं अगाड़ी।
जान-बूझ कर गलती करता
हाथ खड़े कर देना
रोज रोज का नाटक करना
गुप-चुप अंडे सेना
पहले से ही मैं कहता था
मैं तो निपट अनाड़ी।
कब तक खुलती पोल न सारी
रहते बने सिपाही
नहीं दरोगा तक भी पहुँचे
गप्पू सिंह गवाही
खड़ी हुई है अभी वहीं पर
चली जहाँ से गाड़ी।
शुभमस्तु !
19.02.2025●4.45 प०मा०
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