बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

आदमजात खिलाड़ी [नवगीत]

 102/2025

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बनकर मूढ़ चाटता रबड़ी

आदमजात      खिलाड़ी।


करना पड़े नहीं तन-मन से

कहता मुझे न आता

लुल्ल बना फुल तनखा पाए

नित ही ढोंग रचाता

इधर -उधर ही रहता बचके

चलता नहीं अगाड़ी।


जान-बूझ कर गलती करता

हाथ खड़े कर देना

रोज रोज का नाटक करना

गुप-चुप अंडे सेना

पहले से ही मैं कहता था

मैं तो निपट अनाड़ी।


कब तक खुलती पोल न सारी

रहते बने सिपाही

नहीं दरोगा तक भी पहुँचे

गप्पू सिंह गवाही

खड़ी हुई है अभी वहीं पर

चली  जहाँ से गाड़ी।


शुभमस्तु !


19.02.2025●4.45 प०मा०

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