124/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मैं रिटायर भले हो गया हूँ
कोई शिकवा गिला नहीं ।
न कोई बंधन है
न कोई नियमों की पाबंदी
न कोई ठनगन है
न कोई सरकारी चौहद्दी
अबोध से सुबोध हो गया हूँ
गड़ी हुई शिला नहीं ।
जब चाहता हूँ
जो चाहता हूँ खाता हूँ
करता हूँ साहित्य सेवा
भरपूर निभाता हूँ
लक्ष्य दिखलाई दे रहा है
स्व स्थान से हिला नहीं।
वक्त को देखा है
वक्त ने जो दिखाया है
खोया भी बहुत कुछ
बहुत कुछ मैंने पाया है
पैसे की लालची दुनिया
फिर भी किसी से सिला नहीं।
अपनों में परायापन
परायों में खुद को पाया
खुदगर्जी से भरी दुनिया
फिर भी किरदार निभाया
मुझे मेरी झोपड़ी ही भली
चाहिए कोई किला नहीं।
जब तलक देह गति में है
पहचान भी एक बनी
उड़ते ही हंस पिंजड़े से
बढ़ती है नित अनमनी
हमेशा हमेशा चलने का
यहाँ सिलसिला नहीं।
शुभमस्तु !
27.02.2025● 1.30प०मा०
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