108/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
होती तुम्हें न वेदना, चिंतन की यह बात।
पीड़ित करते जीव को,करो मरण या घात।।
करो मरण या घात, नयन में लाज न आए।
बाणों की बरसात, किसी को तू तड़पाए।।
'शुभम्' उगे वह पौध,बीज जो जैसे बोती।
बोए बीज बबूल, शूल की फसलें होती।।
-2-
मानव का ब्रह्मांड में, एक सुघर संयोग।
ये नर -तन सौभाग्य है, नहीं मात्र उपभोग।।
नहीं मात्र उपभोग, वेदना नेह न जाना।
बन जाएगा रोग, रहे नित ऐंचकताना।।
'शुभम्' चले सह नीति,न हो कर्मों से दानव।
सहे वेदना देह, बने रहना है मानव।।
-3-
योगी भोगी हैं सभी, मानव के बहुरूप।
कर्मो का परिणाम है, मिलें शृंग भवकूप।।
मिलें शृंग भवकूप, वेदना को जो जाने।
वही जीव को जीव , मनुज को मानव माने।
'शुभम्' घूमते श्वान,कहीं पशु लँगड़े रोगी।
करते जो सत्कर्म, वही बनते नर योगी।।
-4-
साधन की उपलब्धता, मानव का उपहार।
पशुवत जीवन जी रहा,नहीं वेदना प्यार।।
नहीं वेदना प्यार, मोह ममता ज्यों वानर।
सूकर मछली श्वान,कभी फिरता ज्यों वनचर।।
'शुभम्' वेदना मूल, सदा कर प्रभु आराधन।
हाथ पाँव मष्तिष्क, सभी हैं तेरे साधन।।
-5-
समता का सद भाव हो, हिंस्र भाव से दूर।
भाव हितैषी हो सदा, ममता से भरपूर।।
ममता से भरपूर, नहीं त्यागे मानवता।
बने न पशुवत शूर, क्रूरता या दानवता।।
'शुभम्' वेदना जन्य , मनों में मारुति दृढ़ता।
लघुता - गुरुता छोड़, बसे मन साँची समता।।
शुभमस्तु !
20.02.2025●8.45प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें