116/2025
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
हरे-हरे भरे खेत, फूल खिले पीत सेत,
वासंती बहार नई, पत्र -पत्र हँस रहा।
डोल उठी डाल -डाल, देने लगीं खूब ताल,
भव्यता उदार हुई, बेलों ने तरु गहा।।
आया है किसान खेत,तृप्त हुए नेत्र देख,
अर्धांगिनी नाच रही, नेह निर्झर बहा।
फागुनी धमाल नित्य, गगन तेज आदित्य,
मन की न बात कही, मन रहा है नहा।।
-2-
चना नाच - नाच कहे, मैंने बड़े दुःख सहे,
मोदकों से मोद करूँ, शक्ति स्रोत लीजिए।
लहलहे खेत सभी, फूले नीले फूल रबी,
पकौड़ियाँ मैं ही तलूँ, तत्त्व जान लीजिए।।
अश्व शक्ति खान यहाँ, और नहीं यहाँ वहाँ,
चबैना से करे प्रीत, ठान यही लीजिए।
सतुआ को सान मीत,भुना हो चना न तीत,
पाएँ यों कृपा अमीत, प्रेम रस पीजिए।।
-3-
गाँव-गाँव खेत खड़े, फसलों से सजे बड़े,
कहीं खिले फूल पीत, सरसों बल खाए।
गंदुम के खेत सजे, नृत्य करें सजे-धजे,
विदा हुआ सभी शीत, अलसी इतराए।।
गेंदा गुलाब सुमन, क्यारियों में हैं मगन,
भौरें बने नित्य मीत, झूम चूम सुहाए।
कुहू - कुहू करे शोर, कोकिला न मौन मोर,
खेत बाग वन प्रीत, किसको नहीं भाए।।
-4-
खेत अन्नदान करे, मानव का पेट भरे,
जीवन की मूल महा, महिमा न भूलना।
अन्न फल शाक फूल, खेत की ही स्वर्ण मूल,
लौह स्वर्ण सौध सर्व, खेत की न तूलना।।
खेत कहें धरा कहें, जीव जंतु सभी रहें,
जीवन के दाता खेत, खेत से वसूलना।
खेत से ही दुग्ध सत, विश्व कहे जिसे घृत,
जीवन भी जीव मृत, खेत में ही झूलना।।
-5-
जीव का आधार खेत, जीव रहें समवेत,
खेत से ही रखें हेत, खेत ही आराधना।
नगर गाँव - गाँव सभी, खेत मनुज जिंदगी,
सींचतीं हैं नदी गंग, खेत ही हैं साधना।।
खेत से ही प्राण त्राण, मानव सर्व कल्याण,
नित नए भरें रंग, आपदा का सामना।
कोई भी हो वेश देश, मुक्त रहें क्लेश लेश,
जिएं जीव संग- संग, जागे सद भावना।।
शुभमस्तु !
24.02.2025●10.45 प०मा०
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