076/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अग - जग में
ऋतुराज पधारे
वन में खिले पलाश।
लाल - लाल
फूलों के गुच्छे
लगी हुई ज्यों आग,
रहा ख़िलखिला
जंगल सारा
द्रुमदल का सौभाग,
कली-कली
मुस्काई तरु की
बोल उठे वह काश।
स्वागत में
राजा के
सारे तरु लतिकाएँ,
झूम-झूम
कर नृत्य कर रहे
हँस मुस्काएं,
सबके उर में
लगी हुई है
एक नवेली आश।
कौन नहीं
प्रमुदित है मन में
हरियाली चहुँ ओर,
पतझड़ गया
फूटते पल्लव
भरते हुए हिलोर,
बोल रहा
अमुआ पर कोकिल
विरहिन पड़ी निराश।
शुभमस्तु !
11.02.2025●3.00आ०मा०
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