087/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
अब फागुन मास लगौ अवनी,
सरसाइ उठे वट नीम लता।
वन बागनु में खिलतीं कलियाँ,
नम भूमि बढ़ी तृण की तृणता।।
सब पाटल लाल गुलाल भए,
नव गंदुम नाच रहा रमता।
वन माँहि पलाश हुलास भरें,
प्रिय सेमल राह खड़ा फबता।।
-2-
बहु फूल खिले वन बागनु में,
सब फूलनु पै उड़ती तितली।
अलि झूमि रहे रस चूसि रहे,
हिलि बेलनु की हरषाइ कली।।
मधु चूसि रही मधुमाखि उड़ी,
महकाइ उठी उत कुंज गली।
उड़ि कोकिल गाइ रही अमुआ,
तिय कामु सताय रहौ सबली।।
-3-
मधुमास नयौ मनभावन है,
नव पुष्प खिले वन बागन में।
नर-नारि बड़े सुख-चैन करें,
रँग लाल हरा फबि फागुन में।।
पिचकारि चलें भरि नैननु की,
बरसावत बादल सावन में।
घनश्याम इते उत हैं सखियाँ,
इत गोकुल में बिंदरावन में।।
-4-
पतझार भयौ नव कोंपल हैं,
अधराधर लाल भए तरु के।
मुस्काइ रहे दल पत्र नए ,
रज चूमि रही अँचरा मरु के।।
वट शीशम नीम रसाल नए,
रँगरेज भए पाटल घर के।
धरणी हरषाय रही सिगरी ,
मुखड़े मुस्काय रहे वर के।।
-5-
घनश्याम चले रँग खेलन को,
ब्रजगैल मिली सखि एक नई।
लड़ि आँखिनु आँख गई उनकी,
निज हाथ लई पिचकारि नई।।
उततें वृषभानु कुमारि मिली,
दृग दृष्टि भई नवकंज मई।
कछु बोल न नेंक कढ़े मुख सों,
मुख पै छवि आवत भाव कई।।
शुभमस्तु !
14.02.2025● 9.00प०मा०
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