128/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
भीड़ से भी नाम चमके
समझ में अब आ गया है।
भीड़ से ही वोट मिलते
भीड़ से जनतंत्र चलता
भीड़ का ही लाभ लेकर
हर उचक्का देश छलता
फॉर्मूला भीड़ का ये
देश को भी भा गया है।
कब अकेला एक कोई
भाड़ को ही फोड़ पाता
थोथा चना बजता घना यों
पर नहीं छवि छोड़ जाता
मुफ़्त का राशन मिला तो
हर निकम्मा छा गया है।
हो बहुल संतान वाला
यदि पिता तो नाम उसका
वक्त आए लट्ठ का यदि
ढेर कर दें मार भुस का
नर उछलता है वही अब
टैक्स का धन खा गया है।
कुंभ का अच्छा निदर्शन
देश को अब मिल चुका है
भीड़ से ही आय बढ़ती
आ विपक्षी भी झुका है
एक का सौ - सौ वसूला
मजबूरियां बरसा गया है।
भीड़ हो जितनी भयंकर
आस्था सैलाब लाए
काम जिसका लूट चोरी
क्यों उसे कुछ और भाए
भीड़ का शुभ मंत्र प्यारा
गज़ब अपना ढा गया है।
शुभमस्तु !
28.02.2024●9.00आ०मा०
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