090/2025
समांत : इला
पदांत : है
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मानव का तन एक किला है।
बड़े भाग्य से तुम्हें मिला है।।
खुले द्वार नौ एक बंद है।
दल हजार का फूल खिला है।।
श्वासों के आने - जाने के।
छिद्र उभय नर को न गिला है।।
उर की धड़कन से है जीवन।
धड़-धड़ पल-पल रहा हिला है।।
हुआ जागरण रुके न रसना।
नहीं जीभ का भार झिला है।।
आम पिलपिला जब हो जाता।
वही शाख से सदा रिला है।।
'शुभम्' नहीं खो हे नर जीवन।
मनुज-योनि यह एक *तिला है।।
*तिला= स्वर्ण।
शुभमस्तु !
17.02.2025●5.30आ०मा०
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