112/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जनकसुता सीता भूजाई।
राम प्रिया जानकी कहाई।।
पति अनुगामिनि सीता माता।
रची जगत हित सृष्टि विधाता।।
मिथिला की मिथिलेश कुमारी।
जन्म कथा इस जग की न्यारी।।
हल की सीत कलश टकराई।
प्रकटी वह सीता कहलाई।।
गौरी पूजन करती सीता।
बनी राम जी की परिणीता।।
धनुष यज्ञ का खेल रचा था।
कौन वरे ये साज सजा था।।
संयोगों के जनक विधाता।
रचते वैसा सृजन सुहाता।।
दसकंधर - से भूप पधारे।
सीता जी के भाग सँवारे।।
धनुष राम ने ही वह जीता।
मिली धर्मिणी अद्भुत सीता।।
हर्षित पिता जननि नर -नारी।
जीव-जंतु सब हुए सुखारी।।
लिखा भाग्य में वही हुआ है।
जीवन जन का कर्म - कुँआ है।।
वन में गमन हरण वन माँहीं।
मिली वाटिका की तरु छाँहीं।।
नहीं नियति निज कोई जाने।
सीता माता कब पहचाने।।
जग जननी हैं सीता माता।
'शुभम्' चरण युग शीश नवाता।।
शुभमस्तु !
24.02.2025●1.00आ०मा०
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