123/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
फागुन करे धमाल
पिचकारी की धार।
गली-गली सब गाँव
फागुन में फगुआ रहे
अमराई की छाँव
आमंत्रण अपना कहे
नर -नारी आल्हाद
पड़ी काम की मार।
डफ ढोलक रस घोल
करें हुरंगा गान
देते कपड़े फाड़
मदपाई कर पान
साली की किलकार
टपकाए नर लार।
मादक मदिर तरंग
रही न बाकी लाज
प्रसरित हैं नव रंग
बदल गया हर साज
प्रेम न मिले उधार
एक नहीं तैयार।
कोकिल करे पुकार
कुहू-कुहू की बोलियाँ
महक रहे मृदु फूल
कसक रही हैं चोलियाँ
फागुन के दिन चार
करते भ्रमर दुलार।
सरसों फूली खेत
तितली करती खेल
अलसी कलसी शीश
भार रही है झेल
होली का मधुमास
बाँट रहा है प्यार।
शुभमस्तु !
27.02.2025●11.30आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें