107/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सभी धो रहे मैल देह का
मन की बात नहीं।
टनों मैल पानी में गिरता
खारीपन बढ़ जाए
तुम तो निपट लिए मैलों से
सागर कहाँ समाए
बादल बनकर बरसे तुम पर
यह उपहास नहीं।
महाकुम्भ को साबुन समझा
मल-मल धोई देह
कर्मों के फल मिलते सबको
तभी घुसोगे गेह
जाति - जाति की रटन लगाए
अब क्या जात नहीं।
पुण्य सत्य तो पाप न मिथ्या
कर्मों का सब खेल
गंगाजल से शुद्ध न होना
लिखी हुई जो जेल
वहाँ दूध का दूध मिलेगा
दिन की रात नहीं।
बिना टिकिट ट्रेनों से आया
पुण्य किया या पाप?
बतला दे ऐ मूरख नादां
पाप तुम्हारा बाप!
बन लकीर का तू फ़कीर क्यों
आदमजात नहीं ?
शुभमस्तु !
20.02.2025● 4.45प०मा०
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[8:45 pm, 20/2/2025] DR BHAGWAT SWAROOP:
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