मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

गगन सुमंत्र है [ मनहरण घनाक्षरी ]

 095/2025

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

पंच तत्त्व में है एक,स्वच्छ  ज्यों तना   विवेक,

नीला  है  गगन  नेक, रूप  है विस्तार   का।

समाया   ब्रह्मांड  सब,  यदा-कदा करे   रव,

शांति का स्वरूप नभ, यूप  ज्यों विचार का।।

देह  गेह  में   समान,   ताने   हुए   है  वितान,

प्राण   की  धारे  कमान,रूप ज्यों असार का।

आइए    विचार    करें, शुद्ध  शून्य उर    भरें,

सर्व    कुविचार   हरें,  विविध प्रकार     का।।


                         -2-

गगन   में    मगन    हैं,    लगी  हुई  लगन    है,

साधक   का  जतन  है,  साधना   तो   कीजिए।

प्राणायाम   भाँति-भाँति, कीजिए कपालभाति,

साधना  से  बिंदु   स्वाति,  प्राप्त  कर  लीजिए।।

शीतली    उद्गीथ   करें, किंचित  भी नहीं   डरें,

उज्जाई  या  भ्रामरी भी, समय  मित्र   दीजिए।

भस्त्रिका    अनुलोम  ये,करना  है  विलोम  भी,

ब्रह्मरंध्र       भर      सभी,     प्राणसुधा  पीजिए।।


                         -3-

उड़ते   गगन   बीच,   लगें    सूर्य  के    नगीच,

छोटे-बड़े   खग   सभी,  नीली    नम्र  दिव्यता।

चील   बाज   कीर  धीर, पंख  धर  तैर    वीर,

मंद - मंद   है   समीर,   नित्य   भव्य  नव्यता।

कवि - मन   डोल रहा, विहंगों- सा तोल  रहा,

राज   नए   खोल   रहा,  जाने  कौन  गम्यता।

पहुँचे   न   रवि   जहाँ,  पहुँचा  है कवि   वहाँ,

यहाँ- वहाँ    जहाँ-तहाँ,   कवि   की सुरम्यता।


                         -4-

मस्त - मस्त  झूमें  हम,  उड़ने  में कौन    कम,

गगन - विस्तार    सम,   बाधा    नहीं  जानते।

आया  ऋतुराज  आज,सजाया है दिव्य  साज,

रखे     शीश   भव्य   ताज, टेक  नई    ठानते।।

गाँव  खेत   गैल - गैल,    सुमनों  की   रेलपेल,

भौरें   करें     रस   खेल,   टोक  नहीं     मानते।

उड़    रहीं   गगन   बीच, तितलियाँ हैं    नगीच,

मधुपान     में    हैं   लीन,   लेश   नहीं   छानते।


                          -5-

बाँहों  को  विशाल  खोल, लेश  मात्र नहीं बोल,

काया   में    है  गोल- गोल,   गगन सुमंत्र    है।

मौन    में   महान    नेक,  करे  नहीं   अतिरेक,

मानुसीय   ज्यों   विवेक,   पूर्णतः स्वतंत्र     है।।

देह  में   विराजमान, फुफ्फुसों की दिव्य जान,

प्राण   कान   भी  प्रमाण,  कान  तो  सुयंत्र   है।

रोक   और   टोक  नहीं,   है  प्रवेश सब   वहीं,

खुला   हो  जो  द्वार  तहीं,सूक्ष्म एक   रंध्र   है।।

शुभमस्तु !


18.02.2025●7.15 आ०मा०

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