104/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जिंदगी जुआ नहीं
दाँव पर लगाना क्यों ?
पगडंडियाँ बहुत सी हैं
पहचाननी तो होंगी ही
रँग लेते जो कपड़े
होते न सभी ढोंगी ही
जिंदगी कोई कुँआ नहीं
कूद वहाँ जाना क्यों ?
कौवा करे कुहू- कुहू
कौन उसे मानेगा
समझेगा कोकिल क्यों
नकली ही जानेगा
चाल चले हंसों की
वहम में फँसाना क्यों?
गंगा में नहाने से
गदहा रहे गदहा ही
होना नहीं गौ माता
शक नहीं शुबहा नहीं
जो है सो दिखने में
तुमको यों लजाना क्यों?
शुभमस्तु !
20.02.2025●12.15प०मा०
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