111/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सुमन सुशोभित शाख पर,नभ में उड़े विहंग।
सुखी दंपती नेह से, पल भर नहीं निसंग।।
शुभागमन ऋतुराज का, फूली सरसों खेत,
खिलते पाटल लाल हैं , बिखर रहे बहु रंग।
कुहू-कुहू कोकिल करे, अमराई के बीच,
भँवरे झूले डाल पर, देख तितलियाँ दंग।
पीपल बरगद प्रेम से, करते हैं संवाद,
लाल अधर उनके हुए, चमक रहे हैं अंग।
जाकर कुंभ प्रयाग में, हर-हर बम- बम बोल,
लोग कहें यह पुण्य है, नहा रहे जो गंग।
जैसी जिसकी भावना, वैसा ही फल-लाभ,
गधा कहे मैं गाय हूँ, अब न रहे वे ढंग।
'शुभम्' सयानी नारियाँ, कहतीं फागुन मास,
आओ होली खेल लें,बजा ढोल डफ चंग।
शुभमस्तु !
24.02.2025●12.15 आ०मा०
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