सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

भरा हुआ है [गीतिका]

 072/2025

             


 भरा  हुआ  है  विष  हर  फ़ण में।

कौन  सुरक्षित    उस   रक्षण  में।।


मन में  धूल     लदी      है   सारी,

झाड़ रहा   नर   रज   दर्पण   में।


ऋतु  वसंत    की   आई  मनहर,

लगे   हुए   सब   रस - वर्षण  में।


जननी -  जनक    प्रथम हैं सबसे,

लगा  रहा  क्यों  जीवन   पण  में।


शांति  नहीं क्यों प्रिय  मानव को,

रस   मिलता  है  उसको  रण में।


नहीं  जानता    है    नर    इतना,

बसे राम जी  हर  कण-  कण में।


'शुभम्' न   चिंतन   शोभन  सुंदर,

शांति  रहेगी  क्यों    जनगण  में।


शुभमस्तु !


09.02.2025●11.30प०मा०

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