094/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आया ऋतुराज
पीत हरित वसन ओढ़
कली- कली हँसने लगी।
यहाँ वहाँ
जझाँ तहाँ
हरियाली छा गई
भँवरे गुंजार उठे
तितलियाँ फूल-फूल
सबको ही भा गई
मधुमाखी
झूम-झूम
गली-गली दिखने लगी।
अमराई में
कोयलों की
कुहू -कुहू हो रही
पछुआ करे
जोर शोर
पिड़कुलिया सो रही
अंग भरें गरमाई
मन्मथ नव जागरण
देह उमसने लगी।
कोंपलें हैं
लाल लाल
शिंशुपा वट नीम की
बौराई
अमराई
हरियाली बरसीम की
अंगों में रंग नए
टेसू गुलाल भर
अँगड़ाई रिसने लगी।
शुभमस्तु !
17.02.2025●10.45प०मा०
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