शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

ईमानदार पापी [ हास्य- अतुकांतिका ]

 106/2025

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अब  पता चल गया मुझे

ये  महाकुंभ - स्नान नहीं

ये पाप -पुण्य का छलना है

थोड़े से दिन और शेष हैं

बता दो अभी 

किसे और चलना है,

फिर मत कहना कि 

बताया नहीं

हम चले जाते 

तो पापों के बोझ से

हलके हो आते।


देखों कैसे प्रकृति ने

न्याय कर दिया

पापी और पुण्यात्माओं को

अलग -अलग कर दिया,

पुण्यात्मा इधर और

पापात्मा    उधर,

हम तो गए नहीं

आप अपनी जानें,

हम अपनी आत्मा को

पापी क्यों मानें !


चलो अच्छा ही हुआ 

आप पाप बोझ से

हलके तो हो आए,

मगर नहीं जाने पर

हम कण भर नहीं पछताए।


हमारे लिए तो भू माँ ही

पवित्र गङ्गा है, 

अपने छोटे से नहान घर में

'शुभम्' जहाँ अधनंगा है।

मुझे कोई आपत्ति नहीं

कि आपने वहाँ जाकर 

जता दिया कि आप 

ईमानदार पापी हैं।


शुभमस्तु !


20.02.2025●3.45 प०मा०

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