शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

पल -पल रंग बदलती दुनिया [नवगीत]

 129/2025


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


होली कब क्यों 

पूँछ रहे हो

पल -पल रंग बदलती दुनिया।


अपने रँग में सभी रँगे हैं

गिरगिट से भी आगे सारे

होली सदा यहाँ मनती है

पीत   हरे  नीले  रतनारे

बारह मास यहाँ है फागुन

पल -पल रंग बदलती दुनिया।


एक श्वेत को काला करता

कोई  रँगता  हाथ  लहू  से

कामचोर  चोरी   में  रत है

कोई  माँगे  काम   बहू  से

नेताओं का हर दिन सावन

पल-पल रंग बदलती दुनिया।


मंदिर  में जा घण्ट बजाए

कुंभ नहाए   ले- ले  गोता

लीद मिलाता धनिए में जो

नहीं कभी पछताता  रोता

देश  लूटता है समझावन

पल-पल रंग बदलती दुनिया।


करता है जो काम नित्य ही

संगम में भी वही करेगा

जेब कतरना जिसका उद्यम

क्यों न भला वह कुंभ तरेगा

राम संग आए बहु रावण

पल-पल रंग बदलती दुनिया।


शुभमस्तु !


28.02.2025●10.45आ०मा०

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