129/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
होली कब क्यों
पूँछ रहे हो
पल -पल रंग बदलती दुनिया।
अपने रँग में सभी रँगे हैं
गिरगिट से भी आगे सारे
होली सदा यहाँ मनती है
पीत हरे नीले रतनारे
बारह मास यहाँ है फागुन
पल -पल रंग बदलती दुनिया।
एक श्वेत को काला करता
कोई रँगता हाथ लहू से
कामचोर चोरी में रत है
कोई माँगे काम बहू से
नेताओं का हर दिन सावन
पल-पल रंग बदलती दुनिया।
मंदिर में जा घण्ट बजाए
कुंभ नहाए ले- ले गोता
लीद मिलाता धनिए में जो
नहीं कभी पछताता रोता
देश लूटता है समझावन
पल-पल रंग बदलती दुनिया।
करता है जो काम नित्य ही
संगम में भी वही करेगा
जेब कतरना जिसका उद्यम
क्यों न भला वह कुंभ तरेगा
राम संग आए बहु रावण
पल-पल रंग बदलती दुनिया।
शुभमस्तु !
28.02.2025●10.45आ०मा०
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