मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

जो मैंने अपराध किए [ नवगीत ]

 092/2025

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अपने कल में

 ढूँढ़ रहा हूँ

जो मैंने अपराध  किए।


मैं भी दूध 

धुला ही कब था

जाने  या अनजाने में

छोटे - बड़े 

किए बहु होंगे

लिखे नहीं जो थाने में

कुछ को भुगत

लिया भी होगा

जो न कभी स्वीकार किए।


अपने दोष

अन्य पर थोपे

बगुला भगत  आज इंसान

मैं भी उनमें

एक रहा हूँ

बन अतीत का वह शैतान

फाड़ दिए जो

वसन जानकर 

कभी न अब तक सभी सिए।


इन बीजों में

पेड़ छिपे हैं

जब भी वे बाहर आएँ

कड़ुआ नीम

मधुर है सौरभ

या बबूल जो चुभ जाएँ

एक दिवस

दुनिया देखेगी

जले बुझे वे सभी दिये।


शुभमस्तु !


17.02.2025● 11.15आ०मा०

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