119/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नमन करूँ शिव शंभु को,जय जय गौरी नाथ।
कृपा सदा बरसाइए, उठा वरद निज हाथ।।
गिरिजापति शंकर सभी,हर हर शिव के नाम।
रहते प्रभु कैलाश में,उच्च शृंग पर धाम।।
अवढर दानी शंभु हैं,जग हितकारी नित्य।
नीलकंठ की भक्ति का,सरल शुभद औचित्य।।
भाँग धतूरा बेल दल, फल का करते भोग।
गौरीपति शिव शंभु को,करूँ नमन सह योग।।
शिव तेरस शिवरात्रि को, शंकर उमा विवाह।
भाँग धतूरा भोग से ,करें भजन अवगाह।।
गंगा सोहें शीश पर, ग्रीवा बीच भुजंग।
वाम अंग में हैं उमा,सदा नादिया संग।।
भस्म रमाए देह पर, वर्ण कपूरी गौर।
मृगछाला आसन सदा, शिव-सा है क्या और??
एकमात्र शिवलिंग पर, चढ़े गंग की धार।
करते हैं कल्याण शिव, कितने महा उदार।।
कार्तिकेय सम पुत्र हैं, छोटे पुत्र गणेश।
गौरीपति शिव शंभु को,कहता जगत महेश।।
आक धतूरा भाँग से, होते जो संतुष्ट।
वही रुद्र के रूप हैं, हो जाते जब रुष्ट।।
कृपा करें इस भक्त पर,शिव भोले भगवान।
हरि हर विधि की अर्चना, करूँ नित्य गुणगान।।
शुभमस्तु !
26.02.2025●6.00आरोहणम मार्तण्डस्य। (महाशिवरात्रि)
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