098/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बजट जिंदगी का बड़ा,प्रथम रखे यह ध्यान।
पहले उसे सँभाल ले,मत तू तान कमान।।
क्या आमद क्या खर्च हो,यही बजट का खेल।
जहाँ संतुलन भंग हो, बने जिंदगी जेल।।2।
आय व्ययक का पत्र है, बजट कहें सब लोग।
गए फिरंगी लौट वे, छोड़ गए ये रोग।।
बजट कर्म का जान ले,क्या करना सत कर्म।
पूजा माने कर्म को , यही मनुज का धर्म।।4।
घर हो या व्यापार हो, बजट बनाना सीख।
है इससे अनभिज्ञ तो, माँगेगा तू भीख।।
श्वास-बजट सबको मिला,नाप तौल कर मित्र।
गिन-गिन कर है खर्चना,उड़ा न ज्यों अति इत्र।।6।
बजट बनाये देश का, भारत की सरकार।
जनता को सुख शांति हो,बढ़े विशद व्यापार।।
बजट बिना अनुमान से,चलें न सारे काज।
उत्तम पत्रक जब बने, सही चले शुभ राज।।8।
कितना ही अच्छा बने, कभी बजट का पत्र।
सदा विपक्षी नोंचते, जब चलता है सत्र।।
कभी विपक्षी वर्ग को, बजट न भाए तुच्छ।
टेढ़ी भौंहें वे करें, वृथा ऐंठते मुच्छ।।10।
सत्ता जिसके हाथ में,जान रहे शुभ लाभ।
बजट शुभंकर ही बना,देते अमृत - आभ।।11।
शुभमस्तु !
18.02.2025●9.15 प०मा०
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