बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

कवि भी सफल किसान [ दोहा ]

 081/2025

     

[फसल,माटी,खेत,खलिहान,उन्हारी]

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                 सब में एक

अँगुली की शुभ लेखनी,शब्दों के बहु   बीज।

फसल लहलहाने लगी,मन ये लगा   पसीज।।

कवि भी एक किसान है,बोता फसल सुधार ।

गेंदा      गंदुम   झूमते,   देता    बिंब उतार।।


अक्षर-अक्षर    ब्रह्म  है,  माटी  वही    पवित्र।

करे सुगंधित  काव्य  को, जैसे मनुज  चरित्र।।

माटी  में   हो  बीज  का,पोषण उगता काव्य।

रचता है  कवि  भाव  में,लीन हुआ हो   भाव्य।।


मन के   विस्तृत खेत में ,  बोता शब्द किसान।

कवि का हल शुभ लेखनी, कविता उगे  महान।।

भावामृत से सींच कर,  पके   काव्य का  खेत।

हृदय करें रस पान जो,सफल सुभग  निज  हेत।।


कवि किसान मुद्रण सदा,बना एक खलिहान ।

कवि को केवल काव्य का,करता कर्म    उदान।।

कविता के खलिहान से, गठरी में  भर बीज।

कविजी के घर आ रहे, उर  के जल से  भीज।।


काव्य - उन्हारी फूलती,  फलती बारह    मास।

खरपतवारों  को  निरा,कवि-  किसान ले श्वास।।

रखते   हैं    दुर्भाव   जो,  देख उन्हारी  - खेत।

कवि  किसान  वे चोर हैं,जिनके कर  बस  रेत।।


                  एक में सब

उगी उन्हारी खेत में, हुई फसल     खलिहान।

धन्य-धन्य माटी सभी,कवि भी सफल किसान।।


शुभमस्तु !


12.02.2025●2.00आ०मा०

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