शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

पूजा ही है कर्म जहाँ पर [गीत]

 067/2025

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 पूजा ही है  कर्म जहाँ पर

 वहाँ कर्म क्यों पूजा होगा!


बैठ निठल्ले पूजे जाते

स्वेद बहाना सबसे घटिया,

कट्टीघर में ताऊ कटते

कहने भर को माता बछिया,

तिलक छाप माला ही पुजते

ढोंगी बाबा जी भर  सोता।


भेड़चाल ही  धर्म यहाँ पर

मछली  का उद्धार नहीं है,

पापी तीन बार ले गोता

सबसे उत्तम कर्म यही है,

कृषक कमाए सबको रोटी

उसने पाप यहाँ पर भोगा।


तन  पर ओढ़े  चीवर पीले

भगवा की पूजा तू कर ले,

कथनी करनी एक न हों तो

तन का  घट गंगा से भर ले,

सबसे अहं 'शुभम्' है प्यारे

बदल देह का  अपना चोगा।


शुभमस्तु !


06.02.2025●2.00प०मा०

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