101/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्
शान-शौक में बरबादी का
परचम है लहराया।
दबा कर्ज -पत्थर के नीचे
बिका खेत घर बार
पीले हाथ किए बेटी के
करता द्वाराचार
कर्जादाता फोन कर रहा
घनन-घनन गहराया।
बकरा गया जान से पूरा
स्वाद न उनको आया
ताबीजों में बची न दाढ़ी
बुरे वक्त का साया
फिरता बचा -बचा नजरों से
फिरता है बहराया।
पूरा लिया दहेज गिनाकर
और चाहता भेंट
सौ- सौ के ही नोट चाहिए
ढिल्ली अपनी पेंट
जामाता जम बनकर आया
फैलाता है माया।
शुभमस्तु !
19.02.2025●4.15प०मा०
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