086/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
टेसू के दिन
महुआ की रातें
करने लगी बातें
फगुनाहट आ गई।
कुहू- कुहू करे
कोयलिया
अमराई के बीच,
नाच रहे मोर
बाग वन छत या मुंडेर।
उड़ने लगा
रँग गुलाल
बज उठे ढोल,
पिचकारी
निकल आई
छोड़े फुहारें तोल।
चना झूमे
मटर नाचे
नाच रहे गेहूँ,
पिड़कुलिया
बोल उठी
जय जय श्रीराम।
फागुन की हवा नई
इधर उधर बह रही
वियोगिनि उदास हुई
सजन क्यों आए नहीं।
'शुभम्' ऋतुराज आए
सजाए सभी साज
होली की चंग बजे
ढोलक डफ बज उठे
मन्मथ का आगाज।
शुभमस्तु !
13.02.2025●9.30 प०मा०
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