105/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब आम हँस रहे हैं
अमराई खिलखिलाए।
टेसू मशाल लेकर
आया है पथ दिखाने
खेतों में नाचे सरसों
गोधूम को रिझाने
लटका हुआ चने का
होला हवा झुलाए।
आधी ही रात गुजरी
महुआ महक रहा है
अमराइयों में बैठा
कोकिल चहक रहा है
गमला गुलाब का भी
बँगले में झिलमिलाए।
अरुणिम हैं होंठ पतले
बरगद जटाएँ खोले
लगता है आज पीपल
अधरों से बात बोले
ओटों में मोरे दुबके
नचते हैं गुनगुनाए।
आते ही ब्रह्मवेला
तमचूर आ गए हैं
गलियाँ कुकड़ कूँ बोलें
कवियों को भा गए हैं
मंदिर में घण्टे खनके
घंटियाँ भी खनखनाए।
शुभमस्तु !
20.02.2025● 1.00प०मा०
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