बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

यौवन काल वसंत [ दोहा ]

 099/2025

            

[वसंत,बहार,मधुमास,कुसुमाकर,ऋतुराज]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप शुभम्'


                 सब में एक

यौवन - काल   वसंत है,  जीवन वृक्ष   रसाल।

पाप-पुण्य दो फल लगे,झुकी विटप की डाल।।

अलि दल गुंजन  कर रहे, आया काल   वसंत।

सुमन खिलें कलियाँ  हँसीं,अभी न आए कन्त।।


बार-बार   यौवन   नहीं, लौटे   नहीं  बहार।

आनंदित   होना  हमें, करना प्रथम विचार।।

जो बहार रस  गंध  को, बिसर गया  नर मूढ़।

गज - आरोहण  छोड़कर, गर्दभ पर आरूढ़।।


चैत्र   और    वैशाख   हैं,  मुस्काते मधुमास।

जाग रही  नवचेतना,  बढ़ता  प्रबल उजास।।

अमराई   बौरा  गई,    तितली  भँवरे    झूम।

आया   है  मधुमास  ये,रहे  भ्रमर  मधु  चूम।।


कुसुमाकर - सौंदर्य  से,अग-जग हुआ निहाल।

कोकिल    गाए  फाग को, पीपल देता    ताल।।

आँचल  में  तिय के खिले, कुसुमाकर के फूल।

उनकी   तेज   सुगंध   से, गई अपनपा   भूल।।


मंच सजा ऋतुराज   का,जड़- चेतन रस लीन।

अलिदल  चूमें  फूल को,सरि जल उछलें   मीन।।

आए   हैं   ऋतुराज जी, अभिनंदन    के  हेत।

सजे   बाग- वन    नेह  से, नृत्य कर रहे    खेत।।


                एक में सब

कुसुमाकर ऋतुराज ये,सब वसंत  मधुमास।

राजा  सदा बहार  है,  करे    सुमन तरु   वास।।


शुभमस्तु !


19.02.2025●4.45 आ०मा०

                     ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...