शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

रँग रोली पिचकारी [अतुकांतिका]

 126/2025

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रँग   रोली   पिचकारी

चंदन गुलाल की बारी

चुप-चुप ऋतुराज पधारे

खिल उठे फूल कचनार।


सरसों गेंदा पाटल झूमे

भ्रमरावलि शाखा पर झूले

तितली मचली हर फूल- फूल

कोयलिया करे पुकार।


मन मचल रहा

तन उछल रहा

मन्मथ की सेना मौन

है नेह जीव का सार।


बदला-बदला परिदृश्य

हम जानें सभी अवश्य

लिपटी आमों से बेल

प्रियल प्यार  साकार।


बूढ़ा पीपल मुस्काया

बरगद की मोहक छाया

पतझड़  भी करे धमाल

बालक भरते किलकार।


शुभमस्तु !


27.02.2025● 8.45प०मा०

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