100/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
तौर तरीके बदले सारे
पंगत बदल गई।
पूछ- पूछ कर पूड़ी परसें
बात पुरानी है
कोई नहीं किसी को पूछे
नई कहानी है
प्यार भरी वे आँखें बदलीं
रंगत बदल गई।
भरी नाद पर भैंस सैकड़ों
लगा कतारें ठाड़ी
टपक रहा रसगुल्ला देखो
लिथड़ रही है दाढ़ी
मारामार मची खाने को
संगत बदल गई।
खड़े-खड़े ही खाना-पीना
खड़ी सभ्यता दूर
नया जमाना नई जवानी
सपने चकनाचूर
डीजे बजता हुई धमाधम
मंगत बदल गई।
लिए हाथ में खाली दौना
जैसे खड़े भिखारी
है तंदूर अभी तो ठंडा
उसकी भी लाचारी
बुफे बफैलो का ही भैया
पंगत बदल गई।
शुभमस्तु !
19.02.2025● 4.00प०मा०
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