075/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मुखर मत होना
अरे नर
स्वीकार पथ कर लो।
ज्ञान का ठेका
उन्हीं का
अनुगमन करना,
एक इंची
मत भटकना
अनुसरण करना,
कौन सुनता
है तुम्हारी
तुम भले मर लो।
फूल बरसेंगे
तुम्हारे
शीश पर कितने,
गिन नहीं पाओ
नहीं हैं
बाल भी इतने,
आज ऐसे
या कि वैसे
जगत से डर लो।
क्रीत हो
तुम आज जन से
भेड़ ही मानो,
गिरो चाहे
कूप गहरे
और मत तानो,
घूर के चरते
गधे तुम
घास को चर लो।
शुभमस्तु !
10.02.2025●4.30प०मा०
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